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________________ नवाँ पाठ अकारान्त सर्वादि शब्द ( पुंलिङ्ग और नपुंसकलिङ्ग) सव्व ( सर्व ) ज ( यद् ) त ( तद् ) क (किम् ) अकारान्त सर्वनामों के रूप पुंलिंग में 'वीर' जैसे और नपुंसकलिङ्ग में 'कमल' जैसे होते हैं । उनमें जो विशेषताएँ हैं वे निम्नलिखित हैं: १. प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में केवल 'सव्वे' ( सर्वे ), 'जे' (ये ), 'ते' ( ते ), 'के' ( के ) होता है अर्थात् अकारान्त सर्वनामों के पुंलिङ्ग में प्रथमा के बहुवचन में 'ए' प्रत्यय होता है ( हे० प्रा० व्या० ८।३।५८ )। ६. षष्ठी के बहुवचन में 'सर्वसि' ( सर्वेषाम् ), 'जेसिं' ( येषाम् ), 'तेसिं' :( तेषाम् ), 'केसिं' (केषाम् ) भी होता है अर्थात् षष्टो के बहुवचन में अकारान्त सर्वनामों के पुंलिङ्ग में 'ण' के अतिरिक्त ‘एसिं' प्रत्यय भी होता है ( हे० प्रा० व्या० ८।३।६२ )। जैसे, सव्व + एसि = सव्वेसि, सव्स + ण = सव्वाण । ७. सप्तमी के एकवचन में सवस्ति, सम्वहिं ( सर्वस्मिन् ), सम्वत्थ ( सर्वत्र ); जस्सि, जहिं ( यस्मिन् ); जत्थ ( यत्र ); तस्सि, तहिं ( तस्मिन् ); तत्थ ( तत्र ); कस्सि, कहिं ( कस्मिन् ); कत्थ ( कुत्र ); इस प्रकार तीन-तीन रूप बनते हैं। सप्तमी के एकवचन में अकारान्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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