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________________ नाण ( ज्ञान ) = ज्ञान । चंदण ( चन्दन ) = चन्दन का वृक्ष अथवा लकड़ी । णगर, नगर, णयर, नयर ( नगर ) मुह ( मुख ) = मुख । पित्त ( पित्त ) = पित्त । सिंग ( शृङ्ग ) = सींग | फल ( फल ) फल | प्र० ए० द्वि० ए० अपभ्रंश में 'क' प्रत्ययवाला शब्द हो तो उसके रूप इस प्रकार हैं कमलक कमलअ कुण्डक ( १८१ ) कमलजं कमलउँ Jain Education International = नगर, शहर । केलक - केलअ ( केलउं केलउं कुंडउ कुंड बहुवचन पूर्ववत् " = केला ) 13 "" ( कुण्डा = पानी का कुंडा ) प्रचलित गुजराती — केलुं कुंडू 71 बहुवचन पूर्ववत् अपभ्रंश में शब्द (नाम) के रूप : शब्द का अन्त्य स्वर दीर्घ हो तो ह्रस्व करके तथा ह्रस्व हो तो दीर्घ करके भी रूप बनते हैं । उन रूपों में कोई विभक्ति भी नहीं लगती तथा जैसा शब्द है उसमें कोई परिवर्तन न करके भी रूप बनते हैं अतः विभक्ति लगाने की जरूरत नहीं होती । जैसे— पुंलिंग में वीरा, वीर; नपुंसकलिंग में केला, कुण्डा । हिन्दी में प्रचलित चितारा ( चित्रकर ), केला, जल शब्द से इनकी तुलना की जा सकती है । For Private & Personal Use Only 11 www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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