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धातु के मूल अर्थ में कुछ अतिशय अर्थ बताता है और कोई केवल शोभा के लिये ही प्रयोग में आता है- धातु के अर्थ में बिल्कुल परिवर्तन नहीं करनेवाला उपसर्ग 'अपि' है और वह 'भी' अर्थ में अव्यय भी है । इसलिए 'अपि' के उदाहरणों में उसके दोनों प्रकार के प्रयोग दिखाये हैं ।
पुण् ( पुना ) - पवित्र करना ।
थुण् (स्तु) - स्तुति करना ।
वच्च् ( व्रज ) - गति करना, जाना ।
धातुएँ
कुछ ( कुर्द ) -- कूदना ।
अच्च् (अर्च) – अर्चना करना, पूजा करना ।
वड्ढ़ (वर्ध) - बढ़ना ।
भम ( भ्रम ) - भ्रमण करना, घूमना ।
भम्म (भ्राम्य) -
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भिद् (भिनद् ) - भेदना, टुकड़े-टुकड़े करना ।
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चिइच्छ ( चिकित्स ) — चिकित्सा करना, रोग का उपचार करना ।
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लुण्
गंठ्
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जग्ग् ( जागृ ) -- जागना ।
छिंद् (छिन्द्) - छेदना, चीरना, फाड़ना ।
सिच ( सिञ्च) — सीञ्चना, पीना, तर करना ।
मुंच् ( मुञ्च )
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छोड़ना, त्यागना ।
( लुना ) - काटना, लवना |
(ग्रन्थ) -- गाँठना, गूँथना ।
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