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________________ ( १४६ ) धातुएँ — खुब्भ् ( क्षुभ्य' ) क्षुब्ध होना, दीव (दीपू ) दीपना, चमकना, घबराना प्रकाशित होना कुप्प ( कुप्य ) कोप करना, क्रोध करना, गुस्सा करना, सिव (सिव्य) सीना लव् (लप्) लप्-लप् तव् (तत्) तपना, वेव् (वेप) काँपना सव् (शप्) शाप देना करना, व्यर्थ बोलना संतान होना तप करना, जव (जप्) जपना, जाप करना । खिव् (क्षप् ) फेंकना । खिप्प (क्षिप्य) फेंकना लुह् ( लुप्य) लोटसा, आलोटना दिप्पू ( दीप्य) दीपना, चमकना, शोभित होना, प्रकाशित होना गच्छ् (गच्छ्) जाना बोल्ल (ब्रू ) बोलना ४. प्रथम पुरुष के 'म' से शुरू होने वाले बदुवचनीय प्रत्ययों के पूर्व आये 'अ' का विकल्प से 'इ' ' हो जाता है । जैसे : 3 बोल्ल् + अ + मो बोल्लम, बोल्लामो, बोल्लिमो, बोल्लेमो । Jain Education International , श्री तुलसीकृत रामायण में करहिं नच्चहिं, लहहुं ऐसे अनेक प्रयोग पाये जाते हैं । १. देखिए पिछे के पकरण में नियम १. । २. देखिए पिछले प्रकरण में नियम-९ । ३. हे० प्रा०व्या० ७।३।१५५ । ४. 'मो' की भाँति 'मु', 'म', तथा 'म्ह' प्रत्ययों के रूप भी इसी प्रकार करने चाहिए जैसे : बोल्लम, बोल्लामु, बोल्लिमु, बोल्लेमु । बोल्लम, बोल्लाम, बोल्लिम, बोल्लेम । बोल्लम्ह, बोल्लाम्ह | बोल्लिम्ह, बोल्लेम्ह । - दे० पृ० १२ नि०२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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