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वैदिक तथा लौकिक संस्कृत भाषा के साथ
प्राकृत भाषा की तुलना । १. वैदिक संस्कृत और प्राकृत भाषा में अधिक समानता है।
जिस प्रकार वैदिक संस्कृत के धातुओं में किसी प्रकार का गणभेद नहीं है उसी प्रकार प्राकृत भाषा में भी धातुओं में गणभेद नहीं है । जैसे :पाणिनीय धातुरूप वैदिक धातु रूप प्राकृत धातु रूप हन्ति हनति
हनति, हणति शेते शयते
सयते, सयए भिनत्ति भेदति
भेदति, भेदइ म्रियते मरते
मरते, मरए -देखिये, वैदिक प्रक्रिया सू० २।४।७३, ३।४।८५, २।४।७६, ३।४।११७, ऋग्वेद पृ० ४७४ महाराष्ट्र संशोधन मण्डल । वैदिक संस्कृत में और प्राकृत भाषा में आत्मनेपद तथा परस्मैपद का भेद नहीं है। जैसे :पाणि० सं० वै० सं०
प्रा० भा० इच्छाति
इच्छति, इच्छते इच्छति, इच्छते युध्यते
युध्यति, युध्यते जुज्झति, जुज्झते -देखिये, वैदिक प्रक्रिया ३३११८५ । ३. वैदिक संस्कृत के तथा प्राकृत भाषा के क्रियापदों में अन्य
पुरुष का ( तृतीय पुरुष का ) एक वचन 'ए' प्रत्यय लगने से पाणि० सं० 'शेते' के स्थान में वेदों में शये तथा पाणि सं० ईष्टे के स्थान में वेदों में 'ईशे क्रियापद होते हैं। इसी
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