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भूमिका
परिमाण ३६२० है । योगबिन्दु के स्पष्टीकरण के लिये यह वृत्ति अत्यन्त
महत्त्वपूर्ण है ।
षड्दर्शनसमुच्चय
षड्दर्शनसमुच्चय आचार्य हरिभद्र की लोकविश्रुत दार्शनिक रचना है । मूल कृति मात्र ८७ संस्कृत श्लोकों में निबद्ध है। इसमें आचार्य हरिभद्र ने चार्वाक, बौद्ध, न्याय- -वैशेषिक, सांख्य, जैन और जैमिनि ( मीमांसा दर्शन ) इन छः दर्शनों के सिद्धान्तों का, उनकी मान्यता के अनुसार संक्षेप में विवेचन किया है । ज्ञातव्य है कि दर्शन संग्राहक ग्रन्थों में यह एक ऐसी कृति है जो इन भिन्न-भिन्न दर्शनों को खण्डन- मण्डन से ऊपर उठकर अपने यथार्थ स्वरूप में प्रस्तुत करती है । इस कृति के सन्दर्भ में विशेष विवेचन हम हरिभद्र के व्यक्तित्व की चर्चा करते समय कर चुके हैं ।
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शास्त्रवार्तासमुच्चय
जहाँ षड्दर्शनसमुच्चय में विभिन्न दर्शनों का यथार्थ प्रस्तुतीकरण है, वहाँ शास्त्रवार्तासमुच्चय में विविध भारतीय दर्शनों की समीक्षा प्रस्तुत की गयी है । षड्दर्शनसमुच्चय की अपेक्षा यह एक विस्तृत कृति है । आचार्य हरिभद्र ने इसे ७०२ संस्कृत श्लोकों में निबद्ध किया है । यह कृति आठ स्तबकों में विभक्त है। प्रथम स्तबक में सामान्य उपदेश के पश्चात् चार्वाक मत की समीक्षा की गयी है । द्वितीय स्तबक में भी चार्वाक मत की समीक्षा के साथ-साथ एकान्त स्वभाववादी आदि मतों की समीक्षा की गयी है । इस ग्रन्थ के तीसरे स्तबक में आचार्य हरिभद्र ने ईश्वर-कर्तृत्व की समीक्षा की है । चतुर्थ स्तबक में विशेष रूप से सांख्य मत की और प्रसंगान्तर से बौद्धों के विशेषवाद और क्षणिकवाद का खण्डन किया गया है । पञ्चम स्तबक बौद्धों के ही विज्ञानवाद की समीक्षा प्रस्तुत करता है । षष्ठ स्तबक में बौद्धों के क्षणिकवाद की विस्तार से समीक्षा की गयी है सप्तम स्तबक में हरिभद्र ने वस्तु की अनन्तधर्मात्मकता और स्याद्वाद की प्रस्थापना की है । साथ ही इस स्तबक के अन्त में वेदान्त की समीक्षा भी की गयी है । अष्टम स्तबक में मोक्ष एवं मोक्ष मार्ग का विवेचन है । इसी क्रम में इस स्तबक में प्रसंगान्तर से सर्वज्ञता के निषेधक मीमांसा दर्शन की समीक्षा करते हुए अन्त में सर्वज्ञता को सिद्ध किया है। इसके साथ ही इस स्तबक में शब्दार्थ के स्वरूप पर भी विस्तार से चर्चा उपलब्ध होती है । इस ग्रन्थ की विशेषता यह है कि इसमें न्याय-वैशेषिक, सांख्य, बौद्ध आदि दर्शनों की समीक्षा होते हुए भी उनके प्रस्थापकों के प्रति विशेष आदर भाव प्रस्तुत किया गया है और उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों का जैन दृष्टि के साथ सुन्दर
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