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________________ एकोनविंश ] कनकावली, एकावली, लघुसिंहनिष्क्रीड़ित, महासिंहनिष्क्रीड़ित, वर्धमान-आयम्बिल, गुणरत्नसंवत्सर, सप्तसप्तमिका आदि चार प्रतिमा और कल्याणक आदि तप ग्रहण करना चाहिए ।। १८ ।। तपोविधि पञ्चाशक चान्द्रायण तप के यवमध्या और वज्रमध्या क्रमश: प्रथम व द्वितीय का भेद यवमध्या प्रतिमा सुक्कम्मि पडिवयाओ तहेव वुड्डीऍ जाव पण्णरस । पंचदसपडिवयाहिं तो हाणी किण्ह' पडिवक्खे ।। १९ ॥ शुक्ले प्रतिपद: तथैव वृद्धया यावत्पञ्चदश । पञ्चदशप्रतिपदि ततो हानिं कृष्णप्रतिपक्षे ।। १९ ।। इन दो भेदों में से शुक्लपक्ष में एक्कम के दिन एक भिक्षा या एक कौर के बराबर आहार, दूसरे दिन दो भिक्षा या दो कौर के बराबर आहार, इस प्रकार क्रमश: एक-एक दिन बढ़ने पर एक-एक भिक्षा या कौर बढ़ाते जाना और पूर्णिमा के दिन पन्द्रह भिक्षाओं से प्राप्त या पन्द्रह कौर के बराबर आहार करना। कृष्ण पक्ष में पन्द्रह के दिन १५ भिक्षा या कौर के बराबर आहार लेना, इसी तरह दिन के साथ भिक्षा या कौर की संख्या भी घटाते जाना और अमावस्या के दिन एक भिक्षा से प्राप्त या एक कौर के बराबर आहार लेना यवमध्या प्रतिमा है ।। १९ ।। वज्रमध्या प्रतिमा food पडिवs पण्णरस इगेगहाणी उ जाव इक्को उ । अमवस्सपडिवयाहिं वुड्ढी पण्णरस कृष्णे प्रतिपदि पञ्चदश एकैकहानिस्तु यावत् एकस्तु । अमावस्याप्रतिपदो वृद्धि: पञ्चदश १. 'किह' इति पाठान्तरम् । २. 'पणरस' इति पाठान्तरम् । ३. 'एगहाणी' इति पाठान्तरम् । Jain Education International ३४१ पुन्नाए ।। २० ।। कृष्णपक्ष में प्रतिपदा के दिन पन्द्रह भिक्षाओं से प्राप्त आहार या पन्द्रह कौर के बराबर आहार लेना, द्वितीया के दिन चौदह भिक्षा या कौर के बराबर आहार लेना । इसी प्रकार क्रमशः प्रत्येक दिन भिक्षा या कौर की संख्या को घटाते जाना और अमावस्या के दिन एक भिक्षा या एक कौर के बराबर आहार लेना । For Private & Personal Use Only पूर्णाम् ।। २० ।। www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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