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विद्यानन्द,जिनसेन, स्वयम्भू, हरिभद्र, सिद्धर्षि, शीलांक, अभयदेव आदि प्रमुख है। दिगम्बरों में तत्त्वार्थ की विविध टीकाओं और पुराणों के रचनाकाल का भी यही युग
निर्ग्रन्थ परम्परा में विभागों का प्रवेश (अ) हिन्दू वर्ण एवं जाति व्यवस्था का जैन धर्म पर प्रभाव
___ मूलत: श्रमण परम्परा और जैनधर्म हिन्दू वर्ण-व्यवस्था के विरूद्ध खड़े हुए थे। किन्तु कालक्रम में बृहद् हिन्दू समाज के प्रभाव से उसमें भी वर्ण एवं जाति सम्बन्धी अवधारणाएँ प्रविष्ट हो गई। जैन परम्परा में जाति और वर्ण-व्यवस्था के उद्धव एवं ऐतिहासिक विकास का विवरण सर्वप्रथम 'आचारांगनियुक्ति' (लगभग ईस्वी सन् तीसरी शती) में प्राप्त होता है। उसके अनुसार प्रारम्भ में मनुष्य जाति एक ही थी। ऋषभ के द्वारा राज्य-व्यवस्था का प्रारम्भ होने पर उसके दो विभाग हो गये- १. शासक (स्वामी) २. शासित (सेवक) उसके पश्चात शिल्प और वाणिज्य के विकास के साथ उसके तीन विभाग हुए- १. क्षत्रिय (शासक), २. वैश्य (कृषक और व्यवसायी) और ३. शूद्र (सेवक)। उसके पश्चात् श्रावक-धर्म की स्थापना होने पर अहिंसक, सदाचारी और धर्मनिष्ठ व्यक्तियों को ब्राह्मण (माहण) कहा गया। इस प्रकार क्रमशः चार वर्ण अस्तित्व में आए। इन चार वर्गों के स्त्री-पुरुषों के समवर्णीय अनुलोम एवं प्रतिलोम संयोग से सोलह वर्ण बने जिनमें सात वर्ण और नौ अन्तर वर्ण कहलाए। सात वर्ण में समवर्णीय स्त्री-पुरुष के संयोग से चार मूल वर्ण तथा ब्राह्मण पुरुष एवं क्षत्रिय स्त्री के संयोग से उत्पन्न, क्षत्रिय पुरुष एवं वैश्य स्त्री के संयोग से उत्पन्न और वैश्य पुरुष एवं शूद्र स्त्री के संयोग से उत्पन्न, ऐसे अनुलोम संयोग से उत्पन्न तीन वर्ण। 'आचारांगचूर्णि' (ईसा की ७वीं शती) में इसे स्पष्ट करते हुए बताया गया है कि 'ब्राह्मण पुरुष एवं क्षत्राणी के संयोग से जो सन्तान उत्पन्न होती है वह उत्तम क्षत्रिय, शुद्ध क्षत्रिय या संकर क्षत्रिय कही जाती है, यह पाँचवाँ वर्ण है। इसी प्रकार क्षत्रिय पुरुष और वैश्य स्त्री से उत्पन्न सन्तान उत्तम वैश्य, शुद्ध वैश्य या संकर वैश्य कही जाती है, यह छठाँ वर्ण है तथा वैश्य पुरुष एवं शूद्ध-स्त्री के संयोग से उत्पन्न सन्तान शुद्ध शूद्र या संकर शूद्र कही जाती है, यह सातवाँ वर्ण है। पुन: अनुलोम और प्रतिलोम सम्बन्धों के आधार पर निम्नलिखित नौ अन्तर-वर्ण बने। ब्राह्मण पुरुष और वैश्य स्त्री से 'अम्बष्ठ' नामक आठवाँ वर्ण उत्पन्न हुआ, क्षत्रिय पुरुष और शुद्ध स्त्री से 'उग्र' नामक नवाँ वर्ण हुआ, ब्राह्मण पुरुष और शूद्ध स्त्री से निषाद' नामक दसवाँ वर्ण उत्पन्न हुआ, शुद्र पुरुष और
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