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________________ मानव प्रकृति के दैहिक और चैतसिक पक्षों के आधार पर प्रवर्तक और निवर्तक धर्मों के विकास की इस प्रक्रिया को निम्न सारिणी के माध्यम से अधिक स्पष्ट किया जा सकता है - (प्रवर्तक) देह वासना 1 भोग I अभ्युदय (प्रेय) स्वर्ग कर्म I प्रवृत्ति प्रवर्तक धर्म अलौकिक शक्तियों की उपासना यज्ञमूलक कर्ममार्ग समर्पणमूलक भक्ति मार्ग मनुष्य Jain Education International चिन्तन प्रधान ज्ञानमार्ग (निवर्तक) चेतना विवेक | विराग (त्याग) निःश्रेयस् मोक्ष (निर्वाण) T संन्यास निवृत्ति निवर्तक धर्म I आत्मोपलब्धि निवर्तक (श्रमण) एवं प्रवर्तक (वैदिक) धर्मों के दार्शनिक एवं सांस्कृतिक प्रदेय प्रवर्तक और निर्वतक धर्मों का यह विकास भिन्न-भिन्न मनोवैज्ञानिक आधारों पर हुआ था, अतः यह स्वाभाविक था कि उनके दार्शनिक एवं सांस्कृतिक प्रदेय भिन्न-भिन्न हों । प्रवर्तक एवं निवर्तक धर्मों के इन प्रदेयों और उनके आधार पर उनमें रही हुई पारस्परिक भिन्नता को निम्न सारणी से स्पष्टतया समझा जा सकता है - For Private & Personal Use Only देहदण्डनमूलक तपमार्ग www.jainelibrary.org
SR No.001700
Book TitleJain Dharma ki Aetihasik Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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