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धन्य हुई वह पारिवारिक सद्गृहस्थी रूपी बगिया, जिसमें जन्म लिया एक ऐसे फूल ने जिसकी खूशबू से समस्त मानव जगत् महक उठा। धन्य हुई उस माँ की रत्नकुक्षी, जिससे इस गुलाब का जन्म हुआ। धन्य हुए वे पिता, जिन्होंने जन्म दिया ऐसे गुलाब को जिसने पूरे जैन जगत् में अपने गुणों की खूशबू बिखेर दी। जी हाँ, जयपुर की गलियों में पले-बढ़े श्री गुलाबचन्द जी झाड़चूर का जन्म 3 अक्टूबर, 1918 को पिता श्री फूलचन्द झाड़चूर के घर, माता श्रीमती बसन्तीदेवी की रत्नकुक्षी से हुआ। बचपन दिल्ली के मालीवाड़ा में बीता। तत्पश्चात् जोहरी बाजार के सोन्थलीवालों का रास्ता स्थित मकान में बीता। यहीं से आपने अपना जवाहरात का व्यवसाय किया
और उसे बुलन्दियों को छुआ। आपका विवाह जैन जगत् के प्रतिष्ठित एवं सुविख्यात श्री राजरूप टाँक की सुपुत्री शान्तिदेवी के साथ हुआ था। आपकी गृहस्थी में सात पुत्र क्रमश: श्री नेमिचन्द जी, रिखबचन्द जी, शीतलचन्द जी, रमेशचन्द जी, सुनीलकुमार जी, श्रीचन्द जी एवं विनयचन्द जी तथा एक बहन एवं चार पुत्रियाँ और आठ पौत्र व एक पौत्री है, सभी सत्संस्कारित।
आप सहजता, सरलता की प्रतिमूर्ति के रूप में विख्यात थे। आपके चेहरे पर कभी शिकन नहीं देखी गयी। क्रोध की कोई लकीर कभी आपके चेहरे पर नहीं देखी गयी। आप आधुनिक विचारधारा के धनी थे। मीडिया, खासतौर पर सामाजिक, धार्मिक मीडिया के प्रबल पक्षधर थे। आप कई समाचार-पत्रों के संरक्षकथे, जो इस बात का परिचायक है कि आप धार्मिक अखबारों को कितना अधिक प्रोत्साहन देते थे। यही परम्परा आजभी आपके परिवार में कायम है। आपके सुपुत्र श्री नेमिचन्द जी स्वयं गुडमॉर्निंग इण्डिया के संस्था संरक्षक हैं, जो इस बात को प्रमाणित करती है कि आपका परिवार धार्मिक अखबारों के प्रोत्साहन के प्रति कितना सजग है।
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