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________________ धर्म के मूल उत्स को भूला देते हैं। मनुष्य ने धर्म के सारतत्त्व के आचरण पर बल न देकर रूढ़ियों और कर्मकाण्डों को ही धर्म का सर्वस्व मान लिया। परिणामतः धर्मों की मूलभूत एकता विस्मृत हो गयी और उसके भेद ही प्रमुख बन गये। इसकी फलश्रुति धार्मिक असहिष्णुता और धार्मिक संघर्षों के रूप में प्रकट हुई । यदि हम धर्म के मूल उत्स और शिक्षाओं को देखें तो मूसा की दस आज्ञायें, ईसा के पर्वत पर के उपदेश, बुद्ध के पंचशील, महावीर के पंच महाव्रत, और पंतजलि के पंच यम एक दूसरे से अधिक भिन्न नहीं है। वस्तुतः ये धर्म की मूलभूत शिक्षायें हैं और इन्हें जीवन में जीकर व्यक्ति न केवल एक अच्छा ईसाई, जैन, बौद्ध या हिन्दू बनता है अपितु वह सच्चे अर्थ में धार्मिक भी बनता है । दुर्भाग्य से आज धार्मिक साम्प्रदायिकता ने पुन: मानव समाज को अपनी गिरफ्त में ले लिया है और धर्म के कुछ तथाकथित ठेकेदार अपनी क्षूद्र ऐषणाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति के लिये धर्म के नाम पर मानव समाज में न केवल बिखराव पैदा कर रहे हैं, अपितु वे एक वर्ग को दूसरे वर्ग के विरूद्ध उभाड़ रहे है। आज का युग बौद्धिक विकास और वैज्ञानिक प्रगति का युग है। मनुष्य के बौद्धिक विकास ने उसकी तार्किकता को पैना किया है। आज मनुष्य प्रत्येक समस्या पर तार्किक दृष्टि से विचार करता है, किन्तु दुर्भाग्य है कि इस बौद्धिक विकास के बावजूद भी अन्धविश्वास और रूढ़िवादिता बराबर कायम है तथा दूसरी ओर वैचारिक संघर्ष पनी चरम सीमा पर पहुँच गया है। धार्मिक एवं राजनीतिक साम्प्रदायिकता आज जनता के मानस को उन्मादी बन रही है। कहीं धर्म के नाम पर, कहीं राजनीतिक विचारधाराओं के नाम पर, कहीं धनी और निर्धन के नाम पर, कहीं जातिवाद के नाम पर, कहीं काले और गोरे के भेद को लेकर मनुष्य- मनुष्य के बीच भेद की दीवारें खींची जा रही हैं। आज प्रत्येक धर्म-सम्प्रदाय, प्रत्येक राजनीतिक दल और प्रत्येक वर्ग अपने हितों की सुरक्षा के लिए दूसरे के अस्तित्व को समाप्त करने पर तुला हुआ है । सब अपने को मानव-कल्याण का एकमात्र ठेकेदार मानकर अपनी सत्यता का दावा कर रहे हैं और दूसरे को भ्रान्त और भ्रष्ट बता रहे हैं। मनुष्य की असहिष्णुता की वृत्ति मानव को उन्मादी बनाकर पारस्परिक घृणा, विद्वेष और बिखराव के बीज बो रही है। एक ओर हम प्रगति की बात करते हैं तो दूसरे ओर मनुष्य- मनुष्य के बीच दीवार खड़ी करते हैं । 'इकबाल' इसी बात को लेकर पूछते है - फ़िर्केबन्दी है कहीं और कहीं जाते है। क्या जमाने में पनपने की यही बात हैं? यद्यपि वैज्ञानिक तकनीक से प्राप्त आवागमन के सुलभ साधनों ने आज विश्व की 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001699
Book TitleDharma ka Marm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size8 MB
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