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________________ 48 ] प्रस्तावना 1 वीर संवत १००० पछीतो नक्की करी ले ओ कोई पण प्रमाणथी संगत नथी, । बीजी गाथानो अर्थ पण संपादकोए आत्री रीते कल्पित कर्यो छे, तेओएबीजी गाथानो पाठ आ प्रमाणे स्वीकार्यो छचुणित्सरुवछक्करणसरूवपमाणं होइ किं जं तं । भट्टसहस्सपमाणं तिलोयपण्णत्तिणामाए || मुद्रित त्रिलोकज्ञप्तिमा अर्थनी संगति माटे 'त्थ'ने बदल' छ' अने 'किं जत्त' ने बदले 'किंजंतं' स्वीकारीने संपादको आ गाथानो 'चूर्णिस्वरूप तथा छकरणस्वरूप ग्रन्थनुं जेटलु प्रमाण छे तेलु त्रिलोकप्रज्ञप्तिनुं प्रमाण छ' अत्रो अर्थ करीने शङ्का चिह्न मूके छ े अने चूर्णिपदथी संभवतः कषायप्राभृतचूर्णि होय तेत्री कल्पना करे छ. एटले तेमने पोताने पण आ अर्थ शंकित अने कल्पित लागे छे तो पछी एवा शंकित अने कल्पित अर्थ उपरथी कषायप्राभृतचूर्णि अने तिलोयपण्णसिना कर्त्ता एक मानवानुं अनुमान पण तेटलुज शंकित अने कल्पित बनी जाय छ . वळी त्रिलोकप्रज्ञप्ति प्रमाण गाथामांथी अर्थ तरीके काढवु होय तो उद्देश्य तरीके त्रि० प्र० आत्र जोईओ पण तेम नथी, अर्थात् प्रस्तुत गाथामां त्रि० प्र० ना प्रमाणनी वात होत तो 'तिलोयपण्णत्तिणाम होई किं जत्तं' अबुं पूछाय, पण अने बदल अहीं तो 'चुण्णिस्सरूवत्थकरणसरूवपमाणं होइ किं ? जत्त ओम पूछय छे भेटले चूर्णि स्वरूपार्थ तथा करण स्वरूपनु प्रमाण पूछयु ं छ े माटे संपादकोओ करेलो अर्थ संगत नथी. वळी चूर्णि शब्दथी कावप्राभृतचूर्णिनी कल्पना करवी में पण अप्रस्तुत कल्पना छे. आम आ गाथा उपरथी कल्पनाओ द्वारा अनेक प्रमाणोथी बाधित छतां त्रि० प्र० ना कर्ता तरीके यतित्रपभाचार्यनी अने ते ज क ० प्रा० चूर्णि - कार छे, अवी कल्पना करवी ओ कोई पण हिसावे उचित नथी. ★ कषायप्राभूतचूर्णिनी प्रस्तावनामा लेखके गाथामांना 'त्थ' ने स्थान' 'ड' नी कल्पना करी अढकरण अर्थात् आठकरणवाली कर्मप्रकृतिचूर्णिनी रचना पण यतिवृषभाचार्यना नामे चडावी छे, तेनु ं पण निरसन अमे आ प्रस्तावनामां, कायप्राभृतनी प्रस्तावनामा रजू थयेल केटलीक मान्यताओनी समीक्षा प्रसंगे करीशु. तिलोयपनत्तिनी आ प्रस्तुत गाथाना अर्थ माटेनी अमारी पण थोडी विचारणा रजू करीओ छीओ, हवे पछी आपवामां आवनार प्रमाणोथी प्रस्तुत त्रि० प्र० करतां प्राचीन बीजी त्रि० प्र० छे से सिद्धथाय छ, एथी उपलब्ध त्रि० प्र० अर्वाचीन छ. प्राचीन त्रि० प्र० उपर संभवतः चूर्णिसूत्र तथा तेमां आवतां करणो (गणित प्रक्रिया) नुं पण विवेचन होय ( बन्न अलग होय) अने बन्ने प्रमाण उपलब्ध त्रि० प्र० ना कर्ता ओ बतावेल होय तेम लागे छे. ओटले गाथानो अर्थ आ रीते थाय ★ वीरशासन संघ कलकत्ता तरफथी संपादित मुद्रित कषायप्राभृत तथा चूर्ण. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001698
Book TitleKhavag Sedhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages786
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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