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________________ ७२ प्रकरण ३५. ३६. ३७. ३८. ३९. श्लोकांक १-११७ १-६२ ७-२५ २६-३२ ३३-४० ४१-४९ ५०-५१ ५२ ५३ - ११७ १-४६ १-३१ ३२-४६ १-३१ १-१० ११-१४ १५-३१ १-२५ १-३ ४-१२ १३-२५ १-८१*१ १-२ ३-४ ४०१-३६ ૩૭ ३७१-४० ४१-५८ ५९-७९ ८०-८१ - * १ Jain Education International ज्ञानार्णवः विषय पदस्थ ध्यान पदस्थ ध्यानका लक्षण और फल मन्त्रराजका स्वरूप और ध्यानका उपदेश मन्त्रराजके ध्यानका फल ओंकारकी महत्ता और ध्यानका फल महामन्त्रकी आराधना और फल षोडशाक्षर विद्या और ध्यानफल पडक्षर विद्या और फल चतुरक्षरादि विद्या और ध्यानफल रूपस्थध्यान सर्वज्ञका स्वरूप सर्वज्ञके ध्यानका फल रूपातीत रागी मनुष्यके ध्यानका प्रकार सत् और असत् ध्यानके परिणाम रूपातीत ध्यानका स्वरूप और फल धर्मध्यानफल मनोरोधका उपदेश शुक्लध्यान और उसके अधिकारी धर्मध्यानका फल शुक्लध्यानफल धर्मध्यानलक्षण शुक्लध्यानके अधिकारी शुक्ल ध्यानका लक्षण, भेद और फल तृतीय ध्यानका अधिकारी समुद्घातविधि शुवलयानका प्रभाव आत्मिक सुखकी विशेषता ग्रन्थप्रशस्ति For Private & Personal Use Only Zets ६१४-६४५ ६१४-६१६ ६१६-६२१ ६२१-६२२ ६२३-६२४ ६२५-६२६ ६२७ ६२७ ६२७-६४५ ६४६-६५७ ६४६-६५३ ६५३-६५७ ६५८-६६६ ६५८-६६० ६६१-६६२ ६६३-६६६ ६६८-६७५ ६६८ ६६९-६७१ ६७१–६७५ ६७६-७०० ६७६ ६७७ ६७७-६८७ ६८८ ६८८-६८९ ६८९-६९३ ६९४-६९९ ६९९-७०० www.jainelibrary.org
SR No.001696
Book TitleGyanarnav
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1977
Total Pages828
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Dhyan, & Yoga
File Size18 MB
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