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________________ -२९ ] ३७. रूपातीतम् 2105) सर्वावयवसंपूर्ण सर्वलक्षणलक्षितम् । विशुद्धादर्शसंक्रान्तप्रतिबिम्बसमप्रभम् ॥२६ 2106) इत्यसौ संतताभ्यासवशात्संजातनिश्चयः। अपि स्वप्नाद्यवस्थासु तमेवाध्यक्षमीक्षते ।।२७ 2107) सो ऽहं सर्वगतः सार्वः सिद्धः साध्यो भवच्युतः । परमात्मा परंज्योतिर्विश्वदर्शी निरञ्जनः ।।२८ 2108) तदासौ निश्चलो ऽमूर्तो निष्कलङ्को जगद्गुरुः । चिन्मात्रो विस्फुरत्युच्चैर्ध्यानध्यातृविवर्जितः ॥२९ 2105 ) सर्वावयव-[ सर्वलक्षणलक्षितं सर्वलक्षणैः परिपूर्णम् । विमलादर्श संक्रान्तं यत् प्रतिबिम्ब तत्तुल्यमित्यर्थः ॥२६।। ] अथ तत्स्वरूपमाह। 2106 ) इत्यसौ-तमेवात्मानम् अध्यक्षं प्रत्यक्षम् ईक्षते । शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥२७॥ अथ पुनस्तमेवाह। 2107-8 ) सोऽहं सर्व-भवच्युतः संसारान्मुक्त: । विश्वदर्शी विश्वं पश्यति इति । निष्कलङ्कः कलङ्करहितः । विस्फुरति प्रगटीभवति। शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥२८-२९॥ अथ पुनरात्मानमेवाह। __ जिस प्रकार सब ही अवयवोंसे परिपूर्ण और समस्त लक्षणोंसे संयुक्त पुरुषका प्रतिबिम्ब-उसकी छाया मात्र निर्मल दर्पणके ऊपर पुरुषाकारसे पड़ती है उसी प्रकार शरीरसे पृथक् हो जानेपर निर्मल आत्माका आकार शरीरके आकारमें रह जाता है ।।२६।। इस प्रकारसे जिस योगीको निरन्तर अभ्यासके प्रभावसे विशुद्ध आत्मस्वरूपका निश्चय हो चुका है वह स्वप्नादि अवस्थाओंमें भी उसीका प्रत्यक्ष अवलोकन करता है ॥२७॥ उस समय योगीको वही परमात्मास्वरूपमें सर्वव्यापक, सबका हितकारक, सिद्ध, सिद्ध करनेके योग्य, जन्म-मरणरूप संसारसे रहित, परमात्मा, उत्कृष्ट ज्ञानज्योतिस्वरूप, विश्वदर्शी ( सर्वज्ञ), कर्मरूप कालिमासे रहित, निश्चल, अमूर्त, कर्म-कलंकसे रहित, लोकका स्वामी, चैतन्य मात्र स्वरूपवाला और ध्यान व ध्याताके विकल्पसे रहित हूँ, इस प्रकारका वह विशुद्ध आत्मा प्रतिभासमान होता है ॥२८-२९।। १, All others except P L F सतता। २. MN तदेवा । ३. All others except P सो ऽहं सकलवित् । ४. P सार्वसिद्धः, M सावं। ५. N सिद्धसाध्यो। ६. P भवाच्युतः । ७. J चिन्मयो । ८. M प्रस्फुर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001696
Book TitleGyanarnav
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1977
Total Pages828
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Dhyan, & Yoga
File Size18 MB
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