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________________ अध्याय- १. अहिंसा की सार्वभौमिकता अहिंसा की अवधारणा के विकास का इतिहास मानवीय सभ्यता और संस्कृति के विकास के इतिहास का सहभागी रहा है । जिस देश, समाज एवं संस्कृति में मानवीय गुणों का जितना विकास हुआ, उसी अनुपात में उसमें अहिंसा की अवधारणा का विकास हुआ है। चाहे कोई भी धर्म, समाज और संस्कृति हो, उसमें व्यक्त या अव्यक्त रूप में अहिंसा की अवधारणा अवश्य ही पाई जाती है । मानव समाज में यह अहिंसक चेतना स्वजाति एवं स्वधर्मी से प्रारम्भ होकर समग्र मानव समाज, सम्पूर्ण प्राणी जगत और वैश्विक पर्यावरण के संरक्षण तक विकसित हुई है । यही कारण है कि विश्व में जो भी प्रमुख धर्म और धर्म प्रवर्तक आये उन्होंने किसी न किसी रूप में अहिंसा का संदेश अवश्य दिया है । अहिंसा की अवधारणा जीवन के विविध रूपों के प्रति सम्मान की भावना और सह अस्तित्व की वृत्ति पर खड़ी हुई है । हिन्दूधर्म में अहिंसा वैदिक ऋषियों ने अहिंसा के इसी सहयोग और सह-अस्तित्त्व के पक्ष को मुखरित करते हुए यह उद्घोष किया था 'संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्, समानो मंत्र, समिति समानी' अर्थात् हमारी गति, हमारे वचन, हमारे विचार, हमारा चिन्तन और हमारी कार्यशैली समरूप हो, सहभागी हो । मात्र यही नहीं ऋग्वेद (६.७५.१४ ) में कहा गया कि 'पुमान् पुमांसं परिपातु विश्वतः' अर्थात् व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वे परस्पर एक-दूसरे की रक्षा करें। ऋग्वेद का यह स्वर यजुर्वेद में और अधिक विकसित हुआ । उसमें कहा गया मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे । मित्रस्य चक्षुषा समीक्षा महे ।। यजुर्वेद, ३६.१८ अर्थात् मैं सभी प्राणियों को मित्रवत् देखूं और वे भी हमें मित्रवत् देखें 'सत्वेषु मैत्री' का यजुर्वेद का यह उद्घोष वैदिक चिन्तन में अहिंसक भावना का प्रबल प्रमाण है। उपनिषद काल में यह अहिंसक चेतना आध्यात्मिक जीवन- दृष्टि के आधार पर प्रतिष्ठित हुई । छान्दोग्योपनिषद् ( ३/१७/४ ) में कहा गयाअथ यत्तपो दानमार्जवमहिंसा सत्यवचनमिति ता तस्य दक्षिणाः । अर्थात् इस आत्म-यज्ञ की दक्षिणा तप, दान, आर्जव, अहिंसा और सत्य वचन है । इसी छान्दोग्योपनिषद् (८.१५.१) में स्पष्टतः यह कहा गया है Jain Education International १ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001695
Book TitleAhimsa ki Prasangikta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2002
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ahimsa, & Principle
File Size5 MB
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