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________________ प्रकाशकीय अहिंसा मानव जीवन का ही नहीं, बल्कि प्राणी मात्र का जीवन आधार है। अहिंसा के बिना किसी जीवन की कल्पना करना कोई अर्थ नहीं रखता । अहिंसा के बिना न किसी व्यक्ति का और न ही किसी समाज का विकास हो सकता है। अहिंसक प्रवृत्ति से ही मानव में प्रेम, दया, सद्भाव सहानुभूति आदि फलित होते हैं। आज विश्व में जितने भी धर्म है, लगभग सभी ने किसी न किसी रूप में अहिंसा को स्वीकार किया है। वैदिक धर्म हो या अवैदिक, जैन धर्म हो या बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म हो या इस्लाम धर्म, पारसी धर्म हो या सिक्ख, फर्क इतना है कि किसी ने अहिंसा के सिद्धान्त को आंशिक रूप में स्वीकार किया है तो किसी ने उसकी साधना में पूरा जीवन लगा दिया प्रस्तुत पुस्तक में अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान् प्रो० सागरमल जैन ने विभिन्न धर्मों में समावेशित अहिंसा को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करते हुये वर्तमान की कुछ ज्वलंत समस्याओं के समाधान के रूप में अपना चिन्तन प्रस्तुत किया है। डॉ० जैन जैसे विद्वान् के इस सारगर्भित आलेख को पाठकों के बीच प्रस्तुत करते हुये हमें अनुपम हर्ष हो रहा है। इस पुस्तक के प्रकाशन में सहयोगी रहे संस्थाओं प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर (म०प्र०) और आगम अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर (राज.) का मैं हृदय से आभारी हूँ । साथ ही प्रेस सम्बन्धी कार्य के निर्वहन के लिए डॉ० विजय कुमार, प्रवक्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, सुन्दर अक्षर-सज्जा के लिए विनय श्रीवास्तव, शाजापुर और सत्वर मुद्रण हेतु महावीर प्रेस, वाराणसी को धन्यवाद देता हूँ। दिनांक : 4-4-2002 इन्द्रभूति बरड़ संयुक्त, सचिव पार्श्वनाथ विद्यापीठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001695
Book TitleAhimsa ki Prasangikta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2002
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ahimsa, & Principle
File Size5 MB
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