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एत्तो विसिट्ठतरिया अहिंसा जा सा पुढवी-जल-अगणि-मारुय-वणस्सइ-बीय-हरिय-जलयर-थलयर-खहयर-तस थावर-सव्वभूय-खेमंकरी।।
यह अहिंसा भगवती तो है, सो (संसार के समस्त) भयभीत प्राणियों के लिए शरणभूत है, पक्षियों के लिए आकाश में गमन करने-उड़ने के समान है, यह अहिंसा प्यास से पीड़ित प्राणियों के लिए जल के समान है, भूखों के लिए भोजन के समान है, समुद्र के मध्य डूबते हुए जीवों के लिए जहाज के समान है, चतुष्पद-पशुओं के लिए आश्रम-स्थान के समान है, दुःखों से पीड़ित-रोगीजनों के लिए औषध-बल के समान है, भयानक जंगल में सहयोगियों के साथ गमन करने के समान है।
मात्र यही नहीं, भगवती अहिंसा तो इनसे भी अत्यन्त विशिष्ट है। यह त्रस और स्थावर, सभी जीवों का क्षेम कुशल-मंगल करने वाली है।
यह लोक-मंगलकारी अहिंसा जन-जन के कल्याण में तभी सार्थक सिद्ध होगी, जब इसके सकारात्मक पक्ष को उभार कर जन-साधारण के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा और करूणा एवं सेवा की अन्तश्चेतना को जागृत किया जायेगा। मानव समाज में से हिंसा, संघर्ष और स्वार्थपरता के विष को तभी समाप्त किया जा सकेगा, जब हम दूसरों की पीड़ा का स्व-संवेदन करेंगे, उनकी पीड़ा हमारी पीडा बनेगी। इससे अहिंसा की जो धारा प्रवाहित होगी, वह सकारात्मक होगी और करूणा, मैत्री, सहयोग एवं सेवा के जीवन-मूल्यों को विश्व में स्थापित करेगी।
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