SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बौद्धधर्म में अहिंसा का आधार भगवान बुद्ध ने भी अहिंसा के आधार के रूप में इसी 'आत्मवत सर्वभूतेषु' की भावना को ग्रहण किया है। सूत्तनिपात में बुद्ध कहते हैं- "जैसा मैं हूँ वैसे ही ये सब प्राणी हैं, और जैसे ये सब प्राणी हैं वैसा ही मैं हूँ। इस प्रकार अपने समान सब प्राणियों को समझकर न स्वयं किसी का वध करे और न दूसरों से कराएँ । ३२ गीता में अहिंसा के आधार गीताकार भी अहिंसा के सिद्धान्त के आधार रूप में 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' की उदात्त भावना को लेकर चलता है। यदि हम गीता को अद्वैतवाद की समर्थक मानें, तो अहिंसा के आधार की दृष्टि से जैन-दर्शन और अद्वैतवाद में यह अन्तर है कि जहाँ जैन परम्परा में सभी आत्माओं की तात्त्विक समानता के आधार पर अहिंसा की प्रतिष्ठा की गई है, वहीं अद्वैतवाद में तात्त्विक अभेद के आधार पर अहिंसा की स्थापना की गई है। वाद कोई भी हो पर अहिंसा की दृष्टि से महत्त्व की बात एक ही है कि अन्य जीवों के साथ समानता, जीवन के अधिकार का सम्मान और अभेद की वास्तविक संवेदना या आत्मीयता की अनुभूति ही अहिंसा की भावना का उद्गम है। जब मनुष्य में इस संवेदनशीलता का सच्चे रूप में उदय हो जाता है, तब हिंसा का विचार एक असम्भावना बन जाता है। हिंसा का संकल्प सदैव 'पर' के प्रति होता है, 'स्व' या आत्मीय के प्रति कभी नहीं, अतः आत्मवत् दृष्टि का विकास ही अहिंसा का आधार है। जैन आगमों की अहिंसा का व्यापक स्वरूप जैन-विचारणा में अहिंसा का क्षेत्र कितना व्यापक है, इसका बोध हमें प्रश्नव्याकरणसूत्र से हो सकता है। उसमें अहिंसा के साठ पर्यायवाची नाम वर्णित हैं।" -१. निर्वाण, २. निवृत्ति, ३. समाधि, ४. शान्ति, ५. कीर्ति, ६. कान्ति, ७. प्रेम, ८. वैराग्य, ६. श्रुतांग, १०. तृप्ति, ११, दया, १२. विमुक्ति, १३. शान्ति, १४. सम्यक् आराधना, १५. महती, १६. बोधि, १७. बुद्धि, १८. धृति, १६. समृद्धि, २०. ऋद्धि, २१. वृद्धि, २२. स्थिति (धारक), २३. पुष्टि (पोषक), २४. नन्द (आनन्द), २५. भद्रा, २६. विशुद्धि, २७. लब्धि, २८. विशेष दृष्टि, २६. कल्याण, ३०. मंगल, ३१. प्रमोद, ३२. विशुद्धि, ३३. रक्षा, ३४. सिद्धावास, ३५. अनाम्नव, ३६. कैवल्यस्थान, ३७. शिव, ३८. समिति, ३६. शील, ४०. संयम, ४१. शील परिग्रह, ४२. संवर, ४३. गुप्ति, ४४. व्यवसाय, ४५. उत्सव, ३२. सुत्तनिपात, ३३७।२७. ३३. दर्शन और चिन्तन, खण्ड २, पृ. १२५. ३४. प्रश्नव्याकरणसूत्र, १।२१. १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001695
Book TitleAhimsa ki Prasangikta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2002
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ahimsa, & Principle
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy