________________
38
आचारदिनकर (भाग-२)
जैनमुनि जीवन के विधि-विधान यह क्रिया करे। इसी प्रकार बाएँ हाथ की तरफ डालकर तीन बार यह क्रिया करे। उसके बाद गाँठ लगाकर बाएँ हाथ में डाले। - यह झोली का संस्पर्श (संघट्ट) है। लकड़ी के पात्र, नारियल के पात्र, तुम्बी के पात्र, मिट्टी के पात्र, कटह, अर्थात् घड़े के ऊर्ध्वभाग को तोड़कर बनाया गया पात्र एवं ढक्कन की प्रतिलेखना की क्रिया दिनचर्या अधिकार से जाने। पात्र आदि के धारण करने की विधि इस प्रकार है- संस्पर्शित (संघट्टित) झोली के अन्दर जितने संस्पर्शित (संघट्टित) पात्र डाले जाते हैं, वे सब संघट्टित पात्र कहलाते है। नारियल एवं तुम्बी के पात्र संस्पर्शित होने पर उन्हें दोनों पैरों के मध्य में रखे, फिर डोरी को गाँठ देकर रजोहरण के ऊपर उस डोरी को तीन-तीन बार दोनों हाथों से फिराए - यह डोरी संघट्टन की विधि है। फिर नारियल एवं तुम्बी के पात्र में डोरी डाले, उस डोरी से गृहीत नारियल और तुम्बी के वे पात्र हाथ और पैरों से अस्पर्शित होने पर भी अस्पर्शित (असंघट्ट) नहीं होते हैं। उनके ऊपर संघट्टित कटाह रखे, तब भी असंघट्ट नहीं होता है। इसी प्रकार टूटे हुए पात्र को भी अस्पर्शित नहीं माना जाता है। ढक्कन को पकड़कर छोटे तुम्बी या नारियल के पात्र के ऊपर स्थापित करने पर हाथ और पैर से अस्पर्शित काष्टपात्र का भी स्पर्शन (संघट्टा) होता है। उसकी डोर से आवृत्त किन्तु हाथ और पैर से मुक्त पात्र आदि ही असंघट्टित होता है। असंघट्टित पात्र की डोरी को पकड़ने पर हस्त-पाद से मुक्त होने पर भी संस्पर्शित कहा जाता है, अर्थात् उसका संस्पर्श होता है- ऐसा भी पाठ है। यदि उसके ऊपर तीसरा पात्र रखते हैं, तो उसका संस्पर्श होते हुए भी उसका संस्पर्श (संघट्ट) नहीं माना जाता है, इसलिए उसे नहीं रखे। यदि हाथ और पैर से पात्र पकड़े हो परन्तु हाथ से डोरी छोड़ दे, तो भी डोरी का अस्पर्श (असंघट्ट) नहीं होता है। अंगूठे को काष्टपात्र के मध्य में करके और अंगुलियों को बाहर की तरफ करके उसे पकड़े, तो वह भी-संस्पर्शित (संघट्टित) होता है, किन्तु अन्य प्रकार से पकड़ने पर यह असंस्पर्शित (असंघट्टित) होता है। नारियल एवं तुम्बी पात्र के मध्य में अंगुलियाँ डाल कर एवं अंगूठे को बाहर करके पकड़ते हैं, तो वह संस्पर्शित (संघट्टित) होता है, अन्य प्रकार से पकड़ने पर असंस्पर्शित (असंघट्ट) होता है। संघट्टित
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org