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________________ आचारदिनकर (भाग - २) 35 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान है । कदाचित् उक्त चर्या -विधान का भंग हो जाता है, तो यहाँ उसकी प्रायश्चित्त विधि बताई जा रही है - मुनि यदि संस्पर्शरहित भोजन करे या उससे लिप्त अंश खाए, आधाकर्मी, अथवा संगृहीत भोजन खाए, असमय में मल का त्याग करे, स्थान की प्रतिलेखना न करे, उसकी सीमा का अतिक्रमण करे अर्थात् वहाँ से १०० कदम से आगे जाए, या स्थान की सीमा का परिमाण नहीं करे, कषायों का पोषण करे तथा व्रतों का पोषण नहीं करे, अभ्याख्यान, पैशुन्य या परिवाद करे, पुस्तक को जमीन पर रखे या ऐसी ही अन्य क्रियाओं आदि के द्वारा ज्ञान की आशातना करे, रजोहरण, चोलपट्टे को अपने हाथों से जमीन पर न रखकर ऊपर से ही भूमि पर डाल दे या रजोहरण को कमर पर रखे, दोनों समय खड़े होकर आवश्यक क्रिया न करे, या प्रातःकाल स्वाध्याय न करे, उपधि एवं भोजन-भूमि की प्रमार्जना न करे, उद्देश्यावश्यक भूमि, अर्थात् स्वाध्यायभूमि का प्रमादवश प्रमार्जन न करे, तो इन सभी अतिचार के प्रायश्चित्त के रूप में मुनि उपवास करे । इसी प्रकार यदि यति बिना प्रमार्जन किए द्वार आदि खोलता है, तो वह पूर्व से आधा, अर्थात् आयम्बिल का प्रत्याख्यान करे । समय पर आवश्यक क्रिया न की हो, गोचरी भी समय पर नहीं की हो या नैषेधिकी सामाचारी भी न की हो तो उसके प्रायश्चित्त के लिए नीवि करे। छः पैरों से चलने वाले जीवों को पीड़ा दी हो, तो यति एकासना करे । योग-विधान की मर्यादा के भंग होने पर यह प्रायश्चित्त - विधान बताया गया है । कालिक योगों में संस्पर्श (संघट्ट) एवं उक्तमान होता हैं । उसकी विधि वर्णित की जा रहीं है 1 सर्वप्रथम चर संस्पर्श (संघट्ट) को बताते हैं : व्यायाम के लिए और भिक्षा के लिए दूसरे कृतयोगी साधु को साथ लेकर ही जाए, परन्तु अकृत योगी को न ले जाए । अन्य वस्तुओ अर्थात् गाय आदि का स्पर्श न करे । पंचेन्द्रिय जीवों के बीच से एवं दो मुनियों के बीच से निकलते समय उनका संस्पर्श न करे इसी प्रकार लता, वृक्ष आदि जीवनिकाय का स्पर्श भी न करे । इसी प्रकार वसति में से संघट्टा लेकर निकले । भिक्षाचर्या से आकर ईर्यापथिकी की क्रिया से पापों का नाश करे "हे भगवन् ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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