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________________ जाती हैं, वहाँ प्रव्रज्या विधि में महाव्रतों की प्रतिज्ञा न करवाकर मात्र तीन योग एवं तीन करण से मात्र सामायिक चारित्र का ग्रहण करवाया जाता है। वर्धमानसूरि ने मुनि प्रव्रज्या विधि में महाव्रतों के ग्रहण का कोई उल्लेख नहीं किया है। मात्र आजीवन सामायिक व्रत का ही उल्लेख किया हैं। तीन करण एवं तीन योग से महाव्रतों का आरोपण उपस्थापना विधि में ही किया जाता हैं। वर्धमानसूरि द्वारा उल्लेखित प्रव्रज्या विधि में जहाँ स्थविरकल्पी मुनिदीक्षा का विधान है, वही जिनकल्पी मुनिदीक्षा का विधान भी है। मेरी दृष्टि में वर्धमानसूरि द्वारा क्षुल्लक दीक्षा विधि और जिनकल्पी दीक्षा विधि का उल्लेख करना इस बात का सूचक है कि वे अपने इस ग्रंथ को श्वेताम्बर परम्परा तक सीमित न रखकर सम्पूर्ण जैन समाज के लिए विधि-विधान का एक आधारभूत ग्रन्थ बनाना चाहते थे। दूसरी उनकी यह भी विशेषता है कि उन्होंने योगोद्वहन, वाचनाग्रहण एवं वाचनानुज्ञा - इन तीन विधियों का अलग-अलग उल्लेख किया है। यद्यपि ये तीनों विधियाँ वर्तमान में अपने क्रम में एक ही साथ सम्पन्न की जाती हैं। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि योगोद्वहन का मुख्य उद्देश्य आगमों का अध्ययन करना ही होता है और इस दृष्टि से योगोद्वहन में वाचनाग्रहण भी होता हैं और वाचना देने की अनुज्ञा भी दी जाती है। इन तीनों विधियों में कालग्रहण और संघट्टा का विशेष रूप से उल्लेख हुआ। कालग्रहण का तात्पर्य स्वाध्याय हेतु निर्धारित समय, स्वाध्याय सम्बन्धी पूर्व व्यवस्था एवं स्वाध्यायकाल का निर्धारण करना है। इसी प्रकार संघट्ट का तात्पर्य किन वस्तुओं का स्पर्श करना और किनका नहीं करना तथा स्पर्शनीय कैसे स्पर्श करना आदि है। प्रस्तुत कृति में जो वाचनानुज्ञा की स्वतंत्रविधि दी गई है, उसका मूल कारण यह है कि इस विधि के माध्यम से मुनि को आगमों के अध्यापन का अधिकार प्रदान किया जाए। इसलिए इस पद के धारक व्यक्ति को वाचनाचार्य भी कहा गया है। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि वाचनाचार्य उपाध्याय एवं आचार्य पद से निम्न स्थानीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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