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________________ 191 आचारदिनकर (भाग-२) जैनमुनि जीवन के विधि-विधान इनकी व्याख्या करें अथवा ग्लान के समक्ष तीर्थस्तोत्र, शाश्वत और अशाश्वत चैत्य के स्तोत्र आराधनाकुलक आदि की या उत्तराध्ययनसूत्र, भव-भावना आदि की व्याख्या करे; या फिर संवेगरंगशाला पढ़ें। इस अवसर पर श्रावकजन संघपूजादि बहुत महोत्सव करते हैं। “संघपूजा, जिनवंदन, कायोत्सर्ग, स्तुति, क्षमापना, नमस्कारमंत्र की सम्यक् स्मृति, तीर्थ स्तुति एवं चतुःशरण का ग्रहण - इस विधि से साधु जीवन के अंत में संलेखनाव्रत की साधना पूर्ण करता है और कालस्थिति के अनुसार मोक्ष एवं स्वर्ग को प्राप्त करता है। यह अंतिम (पर्यन्त) आराधना या संलेखना की विधि है। अब मुनि के मृत शरीर की परिष्ठापन विधि बताई जा रही साधु के प्राण निकल जाने पर उसके शरीर के विसर्जन की क्रिया सभी मुनिजन करते हैं। सर्वप्रथम मुनिजन तीन प्रकार की स्थंडिल भूमि - १. दूरस्थ, २. मध्यमदूरी एवं ३. निकटस्थ की गवेषणा करें। फिर सुगन्धित केसर से अभिसिक्त तीन श्वेत वस्त्र धारण करें - एक मध्य प्रस्तरण, दूसरा पहनाने के लिए एवं तीसरा ऊपर डालने के लिए। मृतक साधु के मुख को तुरंत मुखवस्त्रिका से ढक दें, चाहे मृत्यु दिन में हुई हो या रात में। हाथ एवं पैर के अंगूठे और अंगुलियों को परस्पर बाँध दें। यदि मुनि की मृत्यु रात्रि में हो, तो रात्रि जागरण करें। उस समय जो शिष्य बाल हो, कायर हो, अगीतार्थ हो - वे सब उस स्थान से चले जाए और जो गीतार्थ हों, निर्भीक हो, जितनिद्रा हों, उपाय करने में कुशल, फुर्तीले और अप्रमादी हों, वे उस मृतक की देह के समीप रहें। मूत्र को परठे नहीं, वरन् अपने पास में ही रखें। यदि शव उठे, तो गीतार्थ मुनिजन हृदय पर पत्थर रखकर बाएँ हाथ से तिर्पणी में से मूत्र लेकर उसके ऊपर निम्न मंत्र बोलकर छींटे - “गाहाय मा उट्ठ बुज्झ-बुज्झ गुज्झ मा मुज्झ" यह रात्रि के शव के समीप जागरण की विधि है। तत्पश्चात् मृतक देह को स्नान कराकर, केशर, कर्पूर आदि से विलेपित करके उसके सम्मुख पाँच रत्न रखें। चोलपट्ट एवं चादर से आवृत्त करके पूर्व में प्रतिपादित किए गए वस्त्रों सहित उसे शिविका में स्थापित करे। मुखवस्त्रिका, रजोहरण आदि उपकरण उसके समीप में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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