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________________ 173 आचारदिनकर (भाग-२) जैनमुनि जीवन के विधि-विधान नगरी-चेदि देश २०. वीतभय नगर-सिंधु सौवीर देश २१. मथुरानगरीसूरसेनदेश २२. पापानगरी-भंगिदेश २३. मासपुरी नगरी-वर्त देश २४. श्रावस्ती नगरी-कुणाल देश २५. कोटिवर्ष नगर-लाढ देश २६. श्वेताम्बिका नगरी-अर्धकैकय - जिन देशों में तीर्थकर, चक्रवती, बलदेव एवं वासुदेवों का जन्म होता है, वे आर्य देश हैं। इन देशों में रहने वाले साधुओं को इसी प्रकार के जनपदों में पादविचरण करना चाहिए। प्रातःकाल सूर्य के उदित होने पर प्रतिदिन दस मुहूर्त तक पाँच सौ धनुष की यात्रा करना शुभ है। जहाँ माण्डलिक राजा का राज्य हो, वहाँ सात दिन, जहाँ राजा का राज्य हो वहाँ दस दिन और शेष क्षेत्रों में पाँच दिन तक स्थिरता करें। सोमवार, बुधवार, गुरुवार एवं शुक्रवार प्रस्थान के लिए उत्तम कहे गए हैं। पूर्णिमा, अमावस्या एवं चतुर्दशी के दिन विहार न करे। अश्विनी, पुष्य, रेवती, मृगशीर्ष, मूला, पुनर्वसु, हस्त, ज्येष्ठा, अनुराधा नक्षत्र यात्रा हेतु उत्तम नक्षत्र हैं। विशाखा, उत्तरात्रय, आर्द्रा, भरणी, मघा, आश्लेषा एवं कृतिका नक्षत्र यात्रा हेतु अधम नक्षत्र माने गए हैं, अर्थात् इन नक्षत्रों में विहार करना अशुभ माना गया है। शेष नक्षत्र विहार के लिए मध्यम माने गए हैं। ध्रुव एवं मिश्र नक्षत्रों के होने पर पूर्वाह्न में, क्रूर नक्षत्रों के होने पर मध्याहून में, क्षिप्र नक्षत्रों के होने पर अपराह्न में, मृदु नक्षत्रों के होने पर प्रदोष में (पूर्व रात्रि में), तीक्ष्ण नक्षत्रों के होने पर निशीथकाल (मध्यरात्रि) में एवं चर नक्षत्रों के होने पर निशान्त, अर्थात् रात्रि के अन्तिम भाग में यात्रा न करें। दिन शुभ होने पर दिवस की यात्रा एवं नक्षत्र शुभ होने पर रात्रि की यात्रा शुभ होती है। पूर्व आदि चार दिशाओं के जो दिग्द्वार नक्षत्र बताए गए हैं, उन-उन नक्षत्रों में उन-उन दिशाओं में तथा उनसे सम्बन्धित अग्नि आदि विदिशाओं में विहार करना शुभ फलदायी है तथा स्वकीय नक्षत्रों में, अर्थात् उत्तर के नक्षत्रों में पूर्वयात्रा, पूर्व के नक्षत्रों में उत्तर की यात्रा एवं दक्षिण के नक्षत्रों में पश्चिम की यात्रा और पश्चिम के नक्षत्रों में दक्षिण की यात्रा करना मध्यम है तथा इसके विपरीत स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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