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________________ ७. आचारदिनकर (भाग-२) 156 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान मुखवस्त्रिका, रजोहरण एवं दो वस्त्ररूप - ऐसी चार प्रकार की उपधि के साथ सात प्रकार के पात्र-निर्योग (उपधि) रखने पर ग्यारह प्रकार की उपधि होती है। मुखवस्त्रिका, रजोहरण एवं तीन वस्त्र रूप पाँच प्रकार की उपधि के साथ सात प्रकार के पात्र-निर्योग (उपधि) के रखने पर बारह प्रकार की उपधि होती है। उपकरण-सम्बन्धी प्रथम चार विकल्प निर्वस्त्र एवं वस्त्रधारी पाणिपात्र जिनकल्पी के होते हैं। इसके बाद के उपकरण सम्बन्धी चार विकल्प निर्वस्त्र एवं वस्त्रधारी पात्रधर जिनकल्पी के होते हैं। विशुद्ध जिनकल्पी के उपकरण दो प्रकार के होते हैं। पाणिपात्र (निर्वस्त्र) जिनकल्पी के रजोहरण और मुखवस्त्रिका रूप दो ही उपकरण होते हैं। पात्रधर (निर्वस्त्र) जिनकल्पी के मुखवस्त्रिका एवं रजोहरण सहित सात प्रकार के पात्र-निर्योग - ऐसे नौ प्रकार के उपकरण होते हैं। इस प्रकार उपकरण के ये दो विकल्प (दो एवं नौ) विशुद्ध जिनकल्पी के हैं। तीन कल्प्य, अर्थात् वस्त्रों को धारण करने पर जिनकल्पी जिनकल्प का विशुद्ध रूप से पालन नहीं करता है, अर्थात वह अविशुद्ध जिनकल्पी होता है। “तवेण" गाथा के अनुसार जिनकल्प का परीक्षण पाँच प्रकार से होता है - १. तप से २. सूत्र से ३. सत्त्व से ४. एकत्व से एवं ५. बल से। तप - जिनकल्प में इन्द्रियाँ ग्लान न बनें, इस प्रकार से आहार-पानी के बिना छः मास तक तप कर सके। सूत्र - सूत्रसहित, अर्थसहित, ग्रन्थसहित, अंगसहित, भेदसहित, उपांगसहित, नियुक्तिसहित, संग्रहणीसहित, व्याकरणसहित, निरूक्तिसहित, परमार्थसहित, हेतुसहित, दृष्टान्तसहित द्वादशांगीसूत्र का पाठ कर सके - यह सूत्र से परीक्षण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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