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आचारदिनकर (भाग-२)
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जैनमुनि जीवन के विधि-विधान // तीसवाँ उदय // अहोरात्रिचर्या विधि
इस प्रकरण में साधु और साध्वियों की दिनरात की चर्या का वर्णन है। साधु-साध्वी वर्ग की यह चर्या धर्मोपकरण के बिना नहीं होती है, इसलिए उपकरणों की संख्या एवं परिमाण- विधि भी बताई जा रही है। इसमें जिनकल्पी, स्थविरकल्पी और साध्वियों के उपरकणों की चर्चा की गई है। पुस्तक, स्याही की दवात, लेखनी (कलम), पट्टिका (स्लेट), पुस्तकबन्ध, मोरपिच्छी, प्रमार्जनी आदि ज्ञानोपकरण कहे जाते हैं। इनसे संयतियों के निष्परिग्रहव्रत का उपघात नहीं होता है। चाकू, सुई, कैंची, सिलबट्टा, डोरी, कंघी, काष्ठ के पात्र, काष्ठ के पाट, चौकी देवसरोपकारी आदि वस्तुएँ, साधुओं के उपकरण रचना के साधन, वसति निर्वाह के साधन, पुस्तक आदि ज्ञान के साधनरूप उपकरण तथा साधुओं के उपकरण - ये सभी साधु-साध्वियों के परिग्रह विरमण महाव्रत के भंग का हेतु नहीं है। ये उपकरण तो शरीर से प्रतिबद्ध साधु के संयम निर्वाह के लिए कहे गए हैं।
जिनकल्पी के उपकरणों की संख्या बारह बताई गई है, वे इस प्रकार हैं - १. पात्र, २. पात्रबंध ३. गुच्छक ४. पूँजणी ५. पड़ला ६. रजस्त्रण एवं ७. पात्रस्थापन - ये सात उपधि पात्र सम्बन्धी हैं। इनमें तीन वस्त्र, रजोहरण एवं मुंहपत्ति मिलाने से जिनकल्पियों की बारह प्रकार की उपधि होती हैं। जिनकल्पी के दो भेद हैं - करपात्री एवं पात्रधारी। दोनों के पुनः दो-दो भेद हैं - वस्त्रधारी और वस्त्ररहित। जिनकल्पियों की उपधि के दो, तीन, चार, पाँच, नौ, दस, ग्यारह और बारह - ये आठ विकल्प होते हैं। मुहंपत्ति और रजोहरण - ये दो उपधि अचेल जिनकल्पी के लिए भी अनिवार्य है। एक वस्त्र युक्त होने पर तीन उपकरण होते हैं। दो वस्त्र रखने पर चार उपकरण होते हैं। तीन वस्त्र ग्रहण करने पर पाँच उपकरण होते हैं। दो, तीन, चार और पाँच प्रकार की उपधि को सप्तविध पात्र सम्बन्धी उपकरणों के साथ जोड़ने पर जिनकल्पी के क्रमशः नौ, दस, ग्यारह और बारह उपकरण होते हैं। वस्त्ररहित
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