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!! हार्दिक कामना !!
आचारदिनकर नामक यह कृति गृहस्थ एवं मुनि जीवन के विधि-विधानों की मूल्यात्मकता को नवीन दृष्टिकोण से देखने को प्रेरित करती हैं। यह जिनाज्ञा के प्रति हमारी श्रद्धा में अभिवृद्धि करती हैं
और जीवन में धार्मिक विधि-विधानों को अपनाने का संदेश भी प्रदान करती हैं। इसके माध्यम से विधि-विधानों का मर्म स्पष्ट होता हैं, जो परमार्थ के लिए पुरुषार्थ जगाने में और हमारी आत्मोन्नति का द्वार खोलने में सक्षम हैं।
अध्ययनशीला साध्वीवर्या श्री मोक्षरत्ना श्री जी ने आचारदिनकर जैसे विशाल ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद करने का जो दुष्कर कार्य किया है, वह निश्चय ही अनुमोदनीय हैं। अल्प समय में यह महत् कार्य करके उन्होंने अपनी कार्यदक्षता का परिचय दिया हैं। आपका यह कार्य पूर्ववर्ती जैन आचार्यों के ग्रन्थरत्नों की ज्ञानरश्मि को चतुर्दिक फैलाने में समर्थ हो - ऐसा मेरा मंगल आशीर्वाद हैं।
यह ग्रन्थ मंजुषा भव्यात्माओं के मंजुल भावों को जागृत करने वाली बने यही मंगल कामना।
विचक्षण शिशु तिलक चरणरज मंजुला श्री
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