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________________ !! उर्मि अन्तर की !! जैन धर्म विराट है। इसके सिद्धांत भी अति व्यापक और लोक हितकारी है। ऐसे ही सिद्धान्त ग्रन्थ आचारदिनकर के हिन्दी अनुवाद का अब प्रकाशन हो रहा है, यह जानकर अतीव प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है। प्रज्ञा निधान महापुरुषों के द्वारा अपनी साधना से ज्ञान सामग्री ग्रन्थों के रूप में ग्रंथित हुई है। ज्ञान आत्मानुभूति का विषय है, उसे शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता। किन्तु अथाह ज्ञान सागर में से ज्ञानीजन बूंद-बूंद का संग्रह कर उसे ज्ञान पिपासुओं के समक्ष ग्रन्थ रूप में प्रस्तुत करते है। यह अति सराहनीय कार्य है। साध्वी मोक्षरत्ना श्री जी ने अपने अध्ययन काल के बीच इस अननुदित रचना को प्राकृत एवं संस्कृत से हिन्दी भाषा में अनुवादित कर न केवल इसे सरल, सुगम एवं सर्वउपयोगी बनाया अपितु गृहस्थ एवं मुनियों के लिये विशिष्ट जानकारी का एक विलक्षण, अनुपम, अमूल्य उपहार तैयार किया है। __ अन्तरमन की गहराई से शुभकामना के साथ मेरा आशीर्वाद है कि साध्वी मोक्षरत्ना श्री जी इसी प्रकार अपनी ज्ञानप्रतिभा को उजागर करते हुए तथा जिनशासन की सेवा में लीन रहते हुए, साहित्य भण्डार में अभिवृद्धि करे। यही शुभाशीष है। विशेष ज्ञानदाता डॉ. सागरमल जी साहब का इस ग्रंथ अनुवाद में पूर्ण सहयोग रहा, बहुत-बहुत साधुवाद है। । श्री विचक्षण चरणोपासिका सुरंजनाश्री, सिणधरी - २००६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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