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________________ आचारदिनकर (भाग-२) 122 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान करने पर तथा देश पर विपत्ति आने की दशा में पलायन करने पर आदि विषम परिस्थितियों के कारण दिनों का भंग होता है। इस प्रकार योगोद्वहन में दिनों का भंग होने पर उन्हें उसी विधि से पूर्ण करना चाहिए। योगोद्वहन के दिनों की संख्या इस प्रकार है - . आवश्यकसूत्र के योग में आठ दिन, दशवैकालिकसूत्र के योग में पन्द्रह दिन, मण्डलीप्रवेश के योग में सात दिन, उत्तराध्ययनसूत्र के योग में अट्ठाईस दिन, आचारांगसूत्र के योग में पचास दिन, स्थानांगसूत्र के योग में अठारह दिन, समवायांग सूत्र के योग में तीन दिन, निशीथसूत्र के योग में दस दिन, कल्प-व्यवहार एवं दशाश्रुतस्कन्ध के योग में बीस दिन, सूत्रकृतांगसूत्र के योग में तीस दिन, भगवती अंग के योग में एक सौ छियासी दिन, ज्ञाताधर्मकथासूत्र के योग में तैंतीस दिन, उपासकदशांग के योग में बीस दिन', निरयावलिका उपांग के योग में सात दिन, अन्तकृतदशांग के योग में बारह दिन, अनुत्तरोपपातिकदशांग के योग में सात दिन, औपपातिकसूत्र के योग में तीन दिन, राजप्रश्नीयसूत्र के योग में तीन दिन, जीवाजीवाभिगमसूत्र के योग में तीन दिन, प्रज्ञापनासूत्र के योग में तीन दिन, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति एवं चन्द्रप्रज्ञप्ति के योग में भी तीन-तीन दिन, प्रश्नव्याकरणसूत्र के योग में चौदह दिन, विपाकश्रुत के योग में चौबीस दिन, महानिशीथसूत्र के योग में पैंतालीस दिन, जीतकल्प के योग में एक दिन, पंचकल्प के योग में एक दिन - इस प्रकार कुल पाँच सौ इकसठ दिन होते हैं। इनकी मास-गणना करने पर अठारह मास इक्कीस दिन होते हैं - यह सभी योगों के दिन एवं मास की संख्या है। इस प्रकार आचार्य श्रीवर्धमानसूरि विरचित आचारदिनकर के यतिधर्म के उत्तरायण में योगोद्वहन कीर्तन नामक यह इक्कीसवाँ उदय समाप्त होता है। ----००------- - - - - - - - १. पूर्व में उपासकदशांग के योगोद्वहन की विधि में योग के कुल दिन चौदह बताए गए हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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