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आचारदिनकर (भाग-२) 116 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान
पचासवें दिन :- पचासवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा सोलहवें शतक के आदि के सात एवं अन्त के सात - ऐसे चौदह उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया भी उसी दिन शतक के साथ करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
इक्यावनवें दिन :- इक्यावनवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा सत्रहवें शतक के आदि के नौ एवं अन्त के आठ - ऐसे सत्रह उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
बावनवें दिन :- बावनवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा अठारहवें शतक के आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच - ऐसे दस उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
तिरपनवें दिन :- तिरपनवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा उन्नीसवें शतक के आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच - ऐसे दस उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
चौवनवें दिन :- चौवनवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा बीसवें शतक के आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच - ऐसे दस उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।।
पचपनवें दिन :- पचपनवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा इक्कीसवें शतक के आदि के चालीस एवं अन्त के चालीस - ऐसे अस्सी उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
छप्पनवें दिन :- छप्पनवें दिन योगवाही एक काल का ग्रहण करे तथा बाईसवें शतक के आदि के तीस एवं अन्त के तीस - ऐसे साठ उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
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