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________________ आचारदिनकर (भाग-२). 105 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छः बार करे। - बारहवें दिन :- बारहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा ग्यारहवें और बारहवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छ: बार करे। तेरहवें दिन :- तेरहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा तेरहवें एवं चौदहवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छ:-छ: बार करे। चौदहवें दिन :- चौदहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा पन्द्रहवें एवं सोलहवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसके साथ ही तृतीय अध्ययन के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया भी करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ आठ-आठ बार करे। .. पन्द्रहवें दिन :- पन्द्रहवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा चौथे अध्ययन के उद्देश तथा उसके प्रथम एवं द्वितीय अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ सात-सात बार करे। इसी प्रकार सोलहवें दिन से लेकर इक्कीसवें दिन तक आयम्बिल-तप एवं एक काल ग्रहण के द्वारा तृतीय उद्देशक से लेकर चौदहवें उद्देशक तक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसमें प्रत्येक दिन क्रमशः दो-दो उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छ:-छः बार करे। बाईसवें दिन :- बाईसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल ग्रहण करे तथा पन्द्रहवें एवं सोलहवें उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की एवं चौथे अध्ययन के समुद्देश एवं अनुज्ञा की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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