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________________ आचारदिनकर (भाग - २) काल १० अध्ययन ८ १० काउसग्ग ३ ३ ३ 9. ८ w ㄓ 97 99 श्रु.स. १ १२ श्रु.अ.नं. १ Jain Education International जैनमुनि जीवन के विधि-विधान १३. अं.स. १ आयुक्तपानक इसमें साधु को अमुक प्रकार का धान्य लेने का एवं लोह आदि धातुओं के स्पर्श करने का निषेध रहता है । जम्बूविजयजी म.सा. ने इसका यह अर्थ बताया है । पूज्य १४ अं. अ.नं. १ 1 अब विपाकश्रुतांग के योगोद्वहन की विधि बताई जा रही है । विपाकश्रुतांग में दो श्रुतस्कन्ध हैं । यहाँ सर्वप्रथम प्रथम श्रुतस्कन्ध के योग की विधि दी गई है : प्रथम दिन :- प्रथम दिन योगवाही आयम्बिल, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया विपाकश्रुतांग तथा उसके प्रथम श्रुतस्कन्ध के वाचन के उद्देश्य से की जाती है। इसके साथ ही प्रथम अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया भी करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पाँच बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, पाँच बार द्वादशावर्त्तवंदन करे, पाँच बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करे एवं पाँच बार कायोत्सर्ग करे । द्वितीय दिन :- दूसरे दिन योगवाही नीवि एवं एक काल का ग्रहण करे तथा द्वितीय अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे । इस प्रकार तीसरे दिन से लेकर दस दिनों तक कालग्रहण एवं क्रमशः आयम्बिल, नीवि तप के द्वारा तीसरे अध्ययन से लेकर दसों अध्ययनों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे तथा प्रत्येक दिन पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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