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________________ आचारदिनकर (भाग-२) 96 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे । इस प्रकार तीसरे दिन से लेकर दस दिनों तक काल ग्रहण एवं क्रमशः आयम्बिल, नीवि तप के द्वारा तीसरे अध्ययन से लेकर दस तक के अध्ययनों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे तथा प्रत्येक दिन योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे । तत्पश्चात् ग्यारहवें दिन :- ग्यारहवें दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा श्रुतस्कन्ध के समुद्देश की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे । बारहवें दिन :- बारहवें दिन योगवाही आयम्बिल, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे तथा श्रुतस्कन्ध के अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे । तेरहवें दिन :- तेरहवें दिन योगवाही आयम्बिल एवं एक काल का ग्रहण करे तथा प्रश्नव्याकरणसूत्र के समुद्देश की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे। चौदहवें दिन :- चौदहवें दिन योगवाही आयम्बिल, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे तथा प्रश्नव्याकरणसूत्र के अनुज्ञा की क्रिया करे । इस सूत्र के योग में सभी दिनों में आयुक्तपानक' करे । प्रश्नव्याकरणांग के योग में कुल चौदह दिन एवं तीन नंदी होती हैं। यह अनागाढ़ योग है । इसके यंत्र का न्यास इस प्रकार है : प्रश्नव्याकरणांग श्रुतस्कन्ध के योग में कालग्रहण - १४, दिन- १४, नंदी - ३, अनागाढ़ योग काल 9 अध्ययन अं.उ.नं.श्रु.उ.अ.-१ काउसग्ग ५ Jain Education International २ ३ ४ ३ ४ ५ ३ ३ ३ W ३ For Private & Personal Use Only ५ پر www ६ ६ ३ ७ ७ ३ www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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