________________
79
आचारदिनकर (भाग-२) | काउसग्ग ४
जैनमुनि जीवन के विधि-विधान २ १ १ .
३
३
३
३
३
३
अब स्थानांगसूत्र के योगोद्वहन की विधि का उल्लेख है :
प्रथम दिन :- प्रथम दिन योगवाही आयम्बिल-तप, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया स्थानांगसूत्र की वाचना के उद्देश्य से की जाती है, साथ ही इसमें श्रुतस्कन्ध के उद्देश तथा प्रथम अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया भी की जाती है। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ पाँच-पाँच बार करे।
द्वितीय दिन :- द्वितीय दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया द्वितीय अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के उद्देश्य से की जाती है, इसके साथ ही द्वितीय अध्ययन के प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
तृतीय दिन :- तीसरे दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा द्वितीय अध्ययन के तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छ: बार करे।
चौथे दिन :- चौथे दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे। यह क्रिया तृतीय अध्ययन तथा तृतीय अध्ययन के प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के उद्देश्य से की जाती है। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करे।
पाँचवें दिन :- पाँचवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा तृतीय अध्ययन के तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ छः-छ: बार करे।
छटें दिन :- छटें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा चौथे अध्ययन के प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org