________________
आचारदिनकर (भाग-२)
78
जैनमुनि जीवन के विधि-विधान समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे ।
छटें दिन :- छटें दिन योगवाही नीवि - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा छटें आर्द्रा नामक अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे ।
सातवें दिन : सातवें दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा नालिन्दा नामक अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे ।
आठवें दिन :- आठवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे तथा श्रुतस्कन्ध के समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ आठ-आठ बार करे ।
नवें दिन :- नवें दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा सूत्रकृतांग के समुद्देश की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे ।
दसवें दिन :- दसवें दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा सूत्रकृतांग के अनुज्ञा की नंदीक्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक - एक बार करे । इस प्रकार सूत्रकृतांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के योग दस दिन के होते हैं। दोनों श्रुतस्कन्धों में कुल मिलाकर नीस दिन, पाँच नंदी एवं तीस काल का ग्रहण होता है । यह कालिक अनागाढ़ योग है । सूत्रकृतांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के यंत्र का न्यास इस प्रकार है।
सूत्रकृतांग द्वितीय श्रुतस्कन्ध में काल - १०, दिन- १० एवं नंदी-३
४ ५ ६ ७
€
१०
अं.स. अं.अ. नं.
काल
१ २
३
अध्ययन द्वि. श्रु. २ ३
उ.न.
अ. १
Jain Education International
२०
५ ६ ७ श्रु.स.
अ.न.
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org