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आचारदिनकर (भाग - २)
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जैनमुनि जीवन के विधि-विधान तेईसवें दिन - तेईसवें दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा सोलहवीं विमुक्त नामक चूलिका के उद्देश, समुद्देश की अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे ।
चौबीसवें दिन - चौबीसवें दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा द्वितीय श्रुतस्कन्ध के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया तथा नंदी विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ दो-दो बार करे ।
पच्चीसवें दिन - पच्चीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा आचारांग के समुद्देश की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ दो-दो बार करे । छब्बीसवें दिन छब्बीसवें दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा आचारांगसूत्र के अनुज्ञा की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे । यह आचारांग के द्वितीय स्कन्ध के योग हैं। दोनों स्कन्धों के कुल पचास दिन, पचास कालग्रहण, एवं पाँच नंदी होते हैं । यह कालिक अनागाढ़ योग हैं। आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के यंत्र का न्यास निम्नांकित है :
आचारांग का द्वितीय श्रुतस्कन्ध :- काल - २६, दिन- २६, नंदी - २ एवं
अध्ययन- १६
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अध्ययन द्वि.
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