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________________ आचारदिनकर (भाग - २) 72 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान तेईसवें दिन - तेईसवें दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा सोलहवीं विमुक्त नामक चूलिका के उद्देश, समुद्देश की अनुज्ञा की क्रिया करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे । चौबीसवें दिन - चौबीसवें दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा द्वितीय श्रुतस्कन्ध के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया तथा नंदी विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ दो-दो बार करे । पच्चीसवें दिन - पच्चीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा आचारांग के समुद्देश की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ दो-दो बार करे । छब्बीसवें दिन छब्बीसवें दिन योगवाही आयम्बिल - तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा आचारांगसूत्र के अनुज्ञा की विधि करे । इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे । यह आचारांग के द्वितीय स्कन्ध के योग हैं। दोनों स्कन्धों के कुल पचास दिन, पचास कालग्रहण, एवं पाँच नंदी होते हैं । यह कालिक अनागाढ़ योग हैं। आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के यंत्र का न्यास निम्नांकित है : आचारांग का द्वितीय श्रुतस्कन्ध :- काल - २६, दिन- २६, नंदी - २ एवं अध्ययन- १६ ४ १ काल 9 अध्ययन द्वि. श्रु.उ. न. - १ काल 99 अध्ययन ४ २ १ Jain Education International - उद्देशक १/२ ३/४ ५/६ काउसग्ग € ६ ६ १२ ५ ३ १ १३ ६ ७/८ ६ १४ ७ ५ ६ 9 ७ 9 २ ६/१० 99 १/२ ६ ६ て १५ τ आयुक्तपानक -9 १६ ६ आ. -२ For Private & Personal Use Only vir २ mr | 20 ३ ४ € ३ १/२ て १० aw ३ ३ ४ Oc १७ १८ १६ १० ११ १२ आ. आ. आ. -३ - ४ -५ www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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