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________________ आचारदिनकर (भाग-२) जैनमुनि जीवन के विधि-विधान सोलहवें दिन - सोलहवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा नवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। सत्रहवें दिन - सत्रहवें दिन योगवाही आयम्बिल एवं एक काल का ग्रहण करे तथा दसवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। अठारहवें दिन - अठारहवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा ग्यारहवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। उन्नीसवें दिन - उन्नीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा बारहवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एंव अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। बीसवें दिन - बीसवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा तरेहवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। इक्कीसवें दिन - इक्कीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा चौदहवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश की अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। बाईसवें दिन - बाईसवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा पन्द्रहवीं भावना नामक चूलिका के उद्देश, समुद्देश की अनुज्ञा की क्रिया करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करे। इस दिन के बाद से आयुक्तपान का परित्याग होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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