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________________ आचारदिनकर (भाग - २) 62 जैनमुनि जीवन के विधि-विधान इस प्रकार अट्ठाईस दिनों में उत्तराध्ययन का योगोद्वहन पूर्ण होता है । यह कालिक आगाढ़योग है । उत्तराध्ययन के यंत्र का न्यास इस प्रकार है : श्री उत्तराध्ययन आगाढ़योग दिन - २८, काल - २८, नंदी - २ काल १ ३ ६ ७ ८ ६ अध्ययन ३ ५.६ ७ τ काउसग्ग श्रु.उ. ,नंदी - 9 ४ काउसग्ग ३ काल. १० ११ १२ १३ अध्ययन ६ १० ११ १२ m काल. २० २१ अध्ययन २३ २५ २ २ काउसग्ग ६ ६ m Jain Education International ३ m ४ ४- असं, उ.स. २ या ३ २२ २३ २४ २७ २६ ३१ २४ २६ २८ | ३० | ३२ ६ ६ ६ १४ | १५ | १६ १३ १४ १५ १६ ६ ३ ३ ५ ४- असं.अ. ३ १ १७ १७ १८ ६ २६ ३५ २५ ३३ ३४ ३६ ६ ६ 2 w ३ For Private & Personal Use Only १८ १६ २० ६ २७ श्रु.स. ३ ३ १ १६ २१ २२ ६ MY २८. श्रु. अ.न. 9 अब आचारांगसूत्र के योगोद्वहन की विधि वर्णित की जा रही आचारांग में दो श्रुतस्कन्ध हैं, जिसके प्रथम श्रुतस्कन्ध में ब्रह्मचर्य का आख्यान है । यहाँ सर्वप्रथम आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के योगोद्वहन की विधि वर्णित है : प्रथम दिन प्रथम दिन योगवाही आयम्बिल - तप, नंदीक्रिया एवं एक काल का ग्रहण करे । यह क्रिया आचारांगसूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध की वाचना के उद्देश्य से की जाती है। इसमें सर्वप्रथम परिज्ञा नामक प्रथम अध्ययन की वाचना दी जाती है । उसमें भी पहले www.jainelibrary.org
SR No.001694
Book TitleJain Muni Jivan ke Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size15 MB
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