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आचारदिनकर (भाग-२)
जैनमुनि जीवन के विधि-विधान बाईसवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा सत्ताईसवें एवं अट्ठाईसवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रिया विधि में योगवाही पूर्ववत् ही सभी क्रियाएँ छः-छः बार करे।
तेईसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा उनतीसवें एवं तीसवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् ही सभी क्रियाएँ छः-छ: बार करे।
चौबीसवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा एकतीसवें एवं बत्तीसवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् ही सभी क्रियाएँ छः-छ: बार करे। . पच्चीसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा तेंतीसवें एवं चौतीसवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं
अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् ही सभी क्रियाएँ छ:-छः बार करे।
छब्बीसवें दिन योगवाही नीवि-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा पैंतीसवें एवं छत्तीसवें अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् ही सभी क्रियाएँ छः-छः बार करे।
सत्ताईसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप एवं एक काल का ग्रहण करे तथा श्रुतस्कन्ध के समुद्देश की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे।
अट्ठाईसवें दिन योगवाही आयम्बिल-तप, एक काल का ग्रहण एवं नंदीक्रिया करे तथा श्रुतस्कन्ध के अनुज्ञा की विधि करे। इसकी क्रियाविधि में योगवाही पूर्ववत् सभी क्रियाएँ एक-एक बार करे।
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