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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 1.15.1.1 प्रवर्तिनी पदः अर्थ, योग्यता एवं दायित्व 'प्र' उपसर्ग पूर्वक 'वृत्' धातु में णिच् और 'ण्वुल' प्रत्यय लगाकर 'प्रवर्तक' शब्द बना है। स्त्रीलिंग में 'प्रवर्तिका' अथवा 'प्रवर्तिनी' शब्द उन्नेता, प्रणेता, जन्मदाता अथवा संचालिका के अर्थ में व्यवहत होता है। 58 प्रवर्तिनी का श्रमणी-संघ में वही महत्त्व है, जो महत्त्व श्रमण-संघ में आचार्य का है। प्रवर्तिनी को 'साध्वी-संघ की नायिका कहा गया है। वह साध्वियों को संयम-प्रवृत्ति में जोड़ने वाली होती है।159 आचार्य के समकक्ष प्रवर्तिनी होने से उसकी योग्यताएँ भी आचार्य आदि के ही समकक्ष है। इस महत्त्वपूर्ण पद पर वही साध्वी प्रतिष्ठित हो सकती है जो आचार-कुशल, प्रवचन प्रवीण, असंक्लिष्ट चित्तवाली एवं स्थानांग- समवायांग की ज्ञाता हो। आचार-प्रकल्प (आचारांग-निशीथ सूत्र) को प्रमादवश विस्मृत कर देने वाली साध्वी इस पद के सर्वथा अयोग्य हो जाती है, किंतु अन्य कारणवश विस्मृत हो गई हो और पुनः कंठस्थ कर ले तो वह पुनः इस पद की अधिकारिणी हो सकती है।160 अयोग्य साध्वी यदि प्रवर्तिनी पद पर अधिष्ठित हो गई तो अन्य स्वधर्मिणी साध्वियों को चाहिये कि वे उसे पद-त्याग हेतु विनती करे। अयोग्य प्रवर्तिनी की नेश्राय में रहने वाली साध्वियाँ प्रायश्चित् की भागी होती हैं। प्रवर्तिनी पद पर अधिष्ठित श्रमणी को भी चाहिये कि वह अयोग्य घोषित किये जाने पर अपने पद का त्याग कर दे, अन्यथा उसे उतने ही दिन का तप या छेद रूप प्रायश्चित् आता है। प्रवर्तिनी पद की नियुक्ति आचार्य के निर्देशानुसार की जाती है किंतु सामान्य विधान की अपेक्षा सूत्रानुसार साध्वियाँ या प्रवर्तिनी आदि को भी यह अधिकार है कि वह किसी भी योग्य साध्वी को प्रवर्तिनी पद पर नियुक्त कर सकती हैं और अयोग्य सिद्ध होने पर पद-त्याग की अपील भी कर सकती हैं। प्रवर्तिनी को हेमन्त व ग्रीष्म ऋतु में दो साध्वियों के साथ और वर्षावास में कम से कम तीन साध्वियों के साथ रहने का विधान है। 62 प्रवर्तिनी का कर्तव्य है कि वह अपने संघ की श्रमणियों की सुरक्षा एवं व्यवस्था करे। उन्हें विधि-निषेधक नियमों का परिज्ञान कराए। नियमों का उल्लंघन करने पर उन्हें उचित प्रायश्चित दे। 63 3 क्षेत्र में आगत अन्य प्रवर्तिनी को समचित आदर देना. भक्त-पान एवं स्थानादि हेत पच्छा करना भी प्रवर्तिनी का कार्य है। 64 प्रवर्तिनी का एक प्रमुख कर्त्तव्य संघ में उत्पन्न कलह को प्रशान्त करना भी है। साध्वी-संघ में वैराग्यशीला मुमुक्षु महिलाओं को दीक्षित करने का गुरुतर भार भी प्रवर्तिनी ही संभालती है। 158. संस्कृत हिंदी शब्दकोश, पृ. 673 159. (क) प्रवर्तिनी-सकल साध्विनां नायिका-बृहत्कल्प भाष्य, भाग 4 टीका-4339, (ख) “आचार्य स्थाने प्रवर्तिनी" -वही, गाथा 1070 की टीका। 160. व्यवहारसूत्र 5/16%3; व्यवहार भाष्य 2327-28 161. व्यवहारसूत्र 5/13-14 162. व्यवहारसूत्र 5/1-2,5-6 163. बृहत्कल्प भाष्य, भाग 2, उद्देशक 1 गाथा 1043-1044 164. वही, भा. 2, उद्देशक-1 गा. 1071 165. उप्पन्ने अहिगरणे, गणहारि निवेदणं तु कायव्वं। जइ अप्पणा भणेज्जा, चउम्मासा भवे गुरुगा। -बृहत्कल्प भाष्य भा. 3, गाथा 2222 से 2231 36 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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