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तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ 7.10.17 श्री लिछमांजी 'सरदारशहर' (सं. 1974-2033 ) 8/62
आपका जन्म संवत् 1942 'पूर्णिया' (असम) में श्री गुलाबचंदजी पटावरी के यहां तथा विवाह श्री मघराजजी नाहटा 'सरदारशहर' में हुआ। पतिवियोग के पश्चात् 10 वर्षीय पुत्र सोहनलालजी के साथ सरदारशहर में आचार्य श्री कालूगणी के द्वारा भाद्रपद शुक्ला 12 को दीक्षा ग्रहण की। आपको अनेक थोकड़े, पचासों आख्यान, सैंकड़ों गीतिकाएं दोहे, छंद आदि कंठस्थ थे। प्रतिदिन 15 घंटा मौन व स्वाध्याय का क्रम चलता था, 52 वर्षों में लगभग 8 करोड़
थाओं का स्वाध्याय किया। तप के क्षेत्र में आपने उपवास 6060. बेले 185.तेले 24,चोले 24. पचोले 58. छह 3.4 दो बार तथा 7.9.10.11 का तप एक बार किया. 27 वर्ष एकान्तर तप किया। सैकड़ों भाई-बहनों को त्याग-प्रत्याख्यान कराये। अंतसमय में तप और अनशन के 66वें दिन लाडनूं में स्वर्गवासिनी हुईं।
7.10.18 श्री मूलांजी (सं. 1974-2022 ) श्री चांदकंवरजी (सं. 1974-2029 ) 8/64-65
श्री मूलांजी बीकानेर निवासी श्री सालमचंद जी खटेड की पुत्री थीं इनका विवाह भीनासर के मनसुखदासजी बांठिया से हुआ। श्री चांदकंवरजी इनके पति की प्रथम पत्नी लक्ष्मीदेवी की पुत्री थी। बांठियांजी का स्वर्गवास होने पर मूलांजी ने 25 वर्ष की उम्र में तथा चांदाजी ने 10 वर्ष की उम्र में आश्विन शुक्ला 7 को भीनासर में दीक्षा स्वीकार की। मूलांजी ने तपस्या की सौरभ से अपने संयमी जीवन को महकाया। उन्होंने 2059 उपवास 81 बेले, 15 तेले, 26 चोले, 16 पचोले, 3 छह, 48 वर्ष की उम्र में "रामसिंहजी का गुडा" में संथारे के साथ दिवंगत हुईं। चांदाजी ने आगम, स्तोक, व्याख्यान आदि का अच्छा अध्ययन किया अनेक व्याख्यान लिपिबद्ध किये। विनय, विवेक, संघनिष्ठा आदि देखकर आचार्यश्री ने इन्हें संवत् 1985 में अग्रणी पद पर नियुक्त किया। विविध क्षेत्रों में धर्म-प्रभावना करती हुई ये नोखामंडी में स्वर्गस्थ हुई। श्री रमावतीजी ने इनकी संक्षिप्त जीवनी लिखी है।
7.10.19 श्री नोजांजी 'सरदारशहर' (सं. 1974-2039) 8/66
आप 'बीजासर' के श्री रुघलालजी की पुत्री थीं, तोलियासर निवासी भीखणचंदजी बाफना के साथ अल्पायु में विवाह हुआ। पुत्र एवं पति के वियोग से उदासीन नोजांजी को साधु-साध्वियाँ की सत्संगति से दीक्षा की भावना जागृत हुई। 24 वर्ष की अवस्था में कार्तिक शुक्ला 5 को सरदार शहर में आपकी दीक्षा हुई। आप विनम्र सरल, समतावान, सहनशील और सेवाभाविनी साध्वी थीं। बहुत से स्तोक आख्यान भी याद किये। आप महातपस्विनी थीं गृहस्थावस्था में ही उपवास से 11 तक क्रमबद्ध एवं आगे 13, 15, 21 की तपस्या की। दीक्षा के पश्चात् आपकी तप तालिका आश्चर्यचकित कर देने वाली है, वह इस प्रकार है-5039 उपवास, 261 बेले, 95 तेले, 52 चोले, 54 पचोले, चार 6, तीन 7, छह अठाई, चार 9, 10 से 26 का तप एक बार, 27, 29 और 32 का तप दो बार, 28, 30, 31, 33, 34, 36, 37 का तप एक बार किया। आपकी तपस्या के कुल दिन 7199 हैं। आचार्य श्री तुलसी ने आपकी उग्र तप साधना देखकर आपको 'दीर्घतपस्विनी' के रूप में सम्मानित किया। माघ कृ. 3 को 90 वर्ष की अवस्था में आप सुजानगढ़ में स्वर्गस्थ हुई। 7.10.20 श्री इन्द्रूजी 'बीदासर' (सं. 1975-2017) 8/72
आप 'चूरू' के श्री नेहमलजी बैद की सुपुत्री एवं बीदासर के श्री महालचंदजी बैंगानी की धर्मपत्नी थीं। आपने पति को छोड़कर माघ शु. 14 को सुजानगढ़ में दीक्षा अंगीकार की, आप तपस्विनी थीं, कुल 2728 उपवास, 175 बेले, 19 तेले और एक मासखमण के अतिरिक्त आपने लघुसिंहनिष्क्रीड़ित तप की प्रथम परिपाटी तथा
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