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________________ स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ हुईं, आप कलाप्रिय, विवेकी एवं सूक्ष्मबुद्धि संपन्न हैं, प्रत्येक कार्य गहराई से विचारपूर्वक करती हैं। आपने बेले बेले वर्षीतप 16, मासखमण आदि उग्र तपस्याएँ भी की हैं। 6.5.2.18 श्री प्रियदर्शनाबाई (सं. 2022 से वर्तमान) __ आप ध्रांगध्रा निवासी श्री वाडीलाल जेठालालजी की सुपुत्री हैं। वैशाख शु. 5 को ध्रांगध्रा में ही आप दीक्षित हुईं। बोम्बे के विलासी वातावरण से निकल कर श्री लीलावतीबाई के पास दीक्षित होने वाली आप सर्वप्रथम साध्वी हैं, आपने अपनी जागृत प्रज्ञा से अनेकों को धर्म के मार्ग पर लगाया है, आप सेवाभाविनी भी हैं। 6.5.2.19 श्री सुभद्राबाई (सं. 2022-34) ___आप वढवाण निवासी श्री वाडीभाई की सुपुत्री थीं। सं. 2022 वैशाख कृ. 5 को सुरेन्द्रनगर में श्री लीलावती बाई के पास सजोड़े चारित्र अंगीकार किया। आपने अपने जीवन में करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान' की उक्ति को चरितार्थ किया। रोज एक दो गाथाएं करते हुए उत्तराध्ययन के 36 ही अध्ययन कंठस्थ किये। आप सरल स्वभावी व सेवाभाविनी थीं। अंतिम समय में आपको मृत्यु का आभास हो गया था, छह दिन का संथारा करके स्वर्गवासिनी हुईं। 6.5.2.20 श्री मालतीबाई (सं. 2022 से वर्तमान) आप 'सौका' ग्राम के श्री पोपटलाल नरसीदास की सुपुत्री हैं लींबड़ी में ज्येष्ठ शु. 10 को आपकी दीक्षा हुई। आप शरीर से कमजोर होने पर भी आत्मबली हैं, बेले-बेले वर्षीतप, सिद्धितप, मासखमण तप व तेले-तेले वर्षीतप की उग्र तप साधना में संलग्न हैं। 6.5.2.21 श्री मंगलाबाई (सं. 2023 से वर्तमान) आप वीरमगाम निवासी श्री गणेशभाई शाह लक्ष्मीबेन की कन्या हैं। वीरमगाम में ही मृगशिर शु. 10 को आपने दीक्षा ग्रहण की। प्रौढ़वय में दीक्षित एवं वय स्थविर होने पर भी आप उमंगी व उत्साही हैं। आपने बेले-बेले वर्षीतप, पोला अट्ठम75 की वर्षभर आराधना की, सिद्धितप, मासखमण तप की उग्र तपस्या भी कर चुकी हैं। 6.5.2.22 श्री सुयशाबाई (सं. 2023 से वर्तमान) ___आप 'टीकर' ग्राम के श्री मोहनलालजी एवं अमरतबेन की सुपुत्री हैं, वैशाख कृष्णा 5 सं. 2023 को मोरबी में आपने दीक्षा ग्रहण की। आप संस्कृत प्राकृत भाषा की अच्छी जानकार हैं। आचार्यों की संस्कृत टीकाओं के अध्ययन-अध्यापन में भी निपुण हैं। आपके स्वभाव की सौम्यता, गंभीरता एवं विद्वत्ता से अनेक साध्वियाँ लाभान्वित हई हैं। 6.5.2.23 श्री जागृतिबाई (सं. 2023 से वर्तमान) __ आप वांकानेर निवासी श्री रतिलाल वीरचंदभाई एवं लाभुबन की कन्या हैं। वैशाख कृ. 11 को वांकानेर में 275. उपवास एकासना व उपवास मिलकर एक पोला अट्टम कहा जाता है। 1627| Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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