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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 1971 मृगशिर शुक्ला 11 को श्री कस्तूर श्रीजी के पास दीक्षा अंगीकार की । ज्ञानाराधना के साथ जीवन पर्यन्त एकासणा, विधि सह बीस स्थानक, वर्धमान तप की 33 ओली वर्षीतप 16 उपवास, अठाईयाँ आदि कई तपस्याएँ की। जगतश्रीजी, अमरेन्द्र श्री जी आदि शिष्या प्रशिष्याओं का विशाल परिवार होने पर भी ये निस्पृह रहीं। 60 वर्ष तक जिनशासन की अपूर्व सेवा कर संवत् 2032 कोटड़ा में इनका स्वर्गवास हुआ। 15
5.4.24 श्री मुक्ति श्रीजी (सं. 1981
जन्म संवत् 1967 सांधव (कच्छ), पिता खोना मुलजी लखाना माता कुंवरबाई, दीक्षा संवत् 1981 कार्तिक कृष्णा 6 जसापुर (कच्छ) गुरूणी श्री केवल श्रीजी । इन्होंने अपनी क्षिप्रग्राहिणी मेघा से धर्म ग्रंथों का गहन अध्ययन किया, साथ ही अठाई 16 उपवास, बीस स्थानक, नवपद, पंचमी, वर्धमान तप आदि तपस्याएँ तथा सिद्धगिरि का 99 यात्रा 9 बार की। कच्छ, सौराष्ट्र, राजस्थान आदि में विचरण कर शासन प्रभावना के अनेकविध कार्य किये। उत्तम श्रीजी, गुणलक्ष्मीश्रीजी आदि शिष्या - प्रशिष्या का विशाल परिवार है। 516
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5.4.25 श्री हरखश्रीजी ( संवत् 1981 )
सौराष्ट्र जामनगर जिल के नवागाम में संवत् 1966 में जन्म हुआ, पिता गोसर राजा व माता लीलाबाई थीं। पति नरशीभाई का लग्न के कुछ दिन पश्चात् ही स्वर्गवास हो जाने पर संवत् 1981 मृगशिर शुक्ला 2 के दिन श्री कस्तूर श्री जी की शिष्या कर्पूर श्री जी के पास इन्होंने दीक्षा अंगीकार की । इन्होंने 3 वर्षीतप एक मासखमण, 16 उपवास अनेक अठाईयाँ, 500 आयंबिल आदि अनेक तपस्याएँ की। पालीताणा की 99 यात्रा तीन बार तथा तलहटी की 2200 यात्रा कर चुकी हैं। 17
515. वही, पृ. 777-79
516. वही, पृ. 791-92
517. वही, पृ. 780-85
518. वही, पृ. 780-85
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5.4.26 श्री जगतश्रीजी ( संवत् 1999-2023 )
श्री जगतश्री जी का जन्म संवत् 1942 भद्रेश्वर तीर्थ के निकट गुंदाला गाम निवासी शाह मुरजी और हीरबाई के यहाँ हुआ। लाखापुर गाँव के डाह्याभाई से विवाह हुआ, कुछ ही दिनों में वियोग के दुःख से विरक्ति के भाव जागृत हुए, संवत् 1999 देवपुर गाँव में रूपश्रीजी के पास इनकी दीक्षा हुई इनमें तप और भक्तियोग का अपूर्व समन्वय था। वर्धमान तप की 69 ओली वीशस्थानक, चार और छः मासी आयंबिल तप, निरंतर एकासण, दो मासक्षमण, 16, 15, 11, 10 उपवास, 6 अठाई, 12 अट्ठम 206 छट्ठ आदि तपस्याएँ की । इन्होंने अपने उपदेश से देवपुर, भुजपुर, पत्री, बीदड़ा, कोडाय आदि में आयंबिल शालाएँ खुलवाईं। संवत् 2023 वैशाख कृष्णा 4 के दिन यह महान श्रमणी अनेक जीवों का कल्याण करके दिवंगत हुई 1 518
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