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जैन श्रमणियों का बहद इतिहास
अरूणोदयाश्रीजी - दो वर्षीतप, 500 आयंबिल, सहस्रकूट, 8, 9, 30 उपवास हर्षलताश्रीजी - 8, 9, 10, 11, 15, 16, 30 उपवास, सिद्धितप, श्रेणितप, दो वर्षीतप, 500
आयंबिल देवयशाश्रीजी - सिद्धितप, श्रेणितप, वर्षीतप, 8, 9, 10, 11, 16, 30 उपवास कल्पवर्षाश्रीजी - सिद्धितप, 8, 10, 16 उपवास
इनके परिवार की प्रायः साध्वियाँ वर्धमान ओली तप की समाराधना में संलग्न हैं। 5.3.1.8 श्री सुमलयाश्रीजी (संवत् 1987 - स्वर्गस्थ)
पुष्पाश्रीजी के भाई की पुत्रवधु चंदन प्रारंभ से ही अनासक्त वृत्ति वाली थी, ये अपने पुत्र व पति को भी उन्हीं भावों से अनुरंजित कर संवत् 1987 आषाढ़ शुक्ला 6 को संयम पथ पर अग्रसर हुई। पति लब्धिसागरजी
और पुत्र सूर्योदयसागरसूरिजी के नाम से प्रख्यात हुए। सुमलयाश्रीजी की 13 शिष्याएँ हुईं। - सूर्यकांताश्रीजी, विचक्षणाश्रीजी, तिलक श्रीजी, महेन्द्रश्रीजी, तारकश्रीजी, किरणश्रीजी, तिलोत्तमाश्रीजी, हर्षलताश्रीजी, शुभोदयाश्रीजी, विपुलयशाश्रीजी, रम्ययशाश्रीजी, मयायशाश्रीजी, अम्युदयाश्रीजी। इनकी शिष्याएँ -पदमलताश्रीजी267, गुणोदयाश्रीजी, रत्नरेखाश्रीजी, रम्यप्रभाश्रीजी, तीर्थयशाश्रीजी शुभंकराश्रीजी, महानंदाश्रीजी, सुज्येष्ठाश्रीजी, अरूणोदयाश्रीजी, सुरद्रुमाश्रीजी सिद्धिद्रुमाश्रीजी, देवयशाश्रीजी, कल्पवर्षाश्रीजी268 |
5.3.1.9 श्री अंजनाश्रीजी (संवत् 1987-2041)
भावनगर के त्रापज ग्राम के वारैया परिवार में संवत् 1936 को कल्याणजी भाई एवं हेमीबेन के यहाँ अंजनाश्रीजी का जन्म हुआ। जंबूकुमार के समान वैरागी हठीचंदभाई के साथ संबंध हो जाने पर दो पुत्र व एक पुत्री को पैदा किया। लघु पुत्र के देहावसान से विशेष विरक्त बने पति का अनुकरण कर ये भी संवत् 1987 कार्तिक कृष्णा तृतीया के दिन दीक्षित हो गईं। आत्मध्यान में निमग्न रहते हुए मासक्षमण, 16, 15, 9, 8 उपवास, वर्षांतप, बीसस्थानक की ओली वर्धमान तप की 22 ओली, नवपद ओली, बावन अजवाला, पर्वतिथि आराधना, रत्नपावड़ी के छ? अट्ठम, तेरा काठिया के 13 अट्टम, दो छः मासी, छ: चारमासी, दो डेढ़मासी, एक अढ़ीमासी, 11 मास एकांतर उपवास, मेरूतप आदि तप किया। कैंसर की असह्य वेदना में अपूर्व समता का परिचय देकर तलाजातीर्थ पर संवत् 2041 में महाप्रयाण किया। इनकी पुत्री विदुषी साध्वी विद्याश्रीजी इन्हीं की शिष्या बनी। विद्याश्रीजी की 5 शिष्याएँ - श्री रंजनाश्रीजी, गुणोदयाश्रीजी, शीलव्रताश्रीजी, आदित्ययशाश्रीजी, पूर्णकलाश्रीजी एवं 6 प्रशिष्याएँ-प्रियदर्शनाश्रीजी, शुभदर्शनाश्रीजी, गुणरत्नाश्रीजी, अभयरत्नाश्रीजी, विमलयशाश्रीजी तथा कीर्तिकलाश्रीजी हैं।269 श्री अंजनाश्रीजी के परिवार की तपोमूर्ति श्रमणियाँ निम्नलिखित है-70 -
267. विशेष परिचय अग्रिम पृष्ठों पर देखें 268. वही, पृ. 223-25 269. वही, पृ. 232-33 270. मुनि सुधर्मसागरजी, जिनशासन नां श्रमणीरत्नो, पृ. 266-68
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