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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास लक्ष्मणचंदजी संकलेचा के यहाँ हुआ। विवाह व वैधव्य के पश्चात् इन्दौर में 'सुंदरबाई महिलाश्रम' में ये गृहमाता के रूप में कार्य करने लगीं। वहां 'धर्मोत्तेजक महिला मंडल' की स्थापना की, मंदिर में अष्टापद की रचना व प्रतिष्ठा करवाई। कई तपाराधना व तीर्थयात्रा के पश्चात् संवत् 1984 फाल्गुन शुक्ला 5 इन्दौर में श्री विजयसागरजी महाराज से दीक्षा पाठ पढ़कर श्री तिलक श्रीजी की शिष्या बनीं। इनकी प्रथम शिष्या गुणश्रीजी इनके साथ ही दीक्षित हुई, पश्चात् संयमश्रीजी, फल्गुश्रीजी261, सुमनश्रीजी, सुबोधश्रीजी, चतुरश्रीजी, इन्दुश्रीजी262, विवेकश्रीजी, सदक्षाश्रीजी व सनन्दाश्रीजी ये 9 शिष्याएँ हई। समनश्रीजी की तत्त्वज्ञाश्रीजी. धैर्यताश्रीजी. सर्योदयाश्रीजी263 सूर्यकांताश्रीजी, सुविनयाश्रीजी ये 5 शिष्याएँ हैं। सुमनश्रीजी की धैर्यताश्रीजी-विमलप्रभाश्रीजी-प्रीतिधराश्रीजी-प्रीतिसुधाजी हैं। सूर्यकांताश्रीजी की तीन शिष्याएँ हैं-मृगनयनाश्रीजी, सुधासनाश्रीजी, सुधामयाश्रीजी। मृगनयनाजी की पुनः तीन शिष्याएँ हैं- मुक्तिनिलयाश्रीजी, शीलपद्माश्रीजी, मुदिताश्रीजी। विवेकश्रीजी की विकास प्रभाश्रीजी शिष्या है। इस प्रकार मनोहराश्रीजी विशाल शिष्या-प्रशिष्या की संपदा से विभूषित तपोमूर्ति साध्वी थी। मालव देश में इनके द्वारा कई धर्म उद्धारक कार्य हुए। संवत् 2031 में ये स्वर्गवासिनी हुईं।264 5.3.1.7 श्री पुष्पाश्रीजी (संवत् 1987-2017)
त्याग के मार्ग पर सभी परिवारीजनों को जोड़ने वाली पुष्पाश्रीजी कपड़वंज (गुजरात) के प्रतिष्ठित शेठ श्री झवेरचंद वीशानी और मानकुंवरबेन की सुपुत्री थीं, तथा गांधी परिवार के श्रेष्ठी माणेकचंदभाई की पुत्रवधू थी। वैधव्य के पश्चात् अपने भतीजे वर्तमान कंचनसागरसूरिजी के साथ संवत् 1987 वैशाख शुक्ला 10 को कपड़वंज में हीरश्रीजी के पास दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा के पश्चात् इनके प्रेरक व्यक्तित्व से पुत्र, पुत्रवधूएँ, पौत्र-पौत्री सभी ने एक साथ दीक्षा अंगीकार कर जंबूकुमार का आदर्श उपस्थित किया। संवत् 2017 कपड़वंज में ही समता-समाधि पूर्वक इनका स्वर्गवास हुआ। उस समय आपकी शिष्या-प्रशिष्याओं की संख्या 80 से ऊपर थी। कुछ शिष्या - प्रशिष्याओं के नाम इस प्रकार हैं-सुमलयाश्रीजी, मनकश्रीजी, निरंजनाश्रीजी, प्रभंजनश्रीजी, स्नेहप्रभाश्रीजी, चन्द्रगुप्ताश्रीजी, संवेगश्रीजी, कल्पयशाश्रीजी, तत्त्वज्ञाश्रीजी, विश्वप्रज्ञाश्रीजी, धर्मज्ञाश्रीजी, सम्यग्रत्नाश्रीजी, दिव्योदयाश्रीजी, अमीप्रज्ञाश्रीजी, कनकप्रभाश्रीजी, हेमेन्द्र श्रीजी, नित्योदयाश्रीजी, वांचयमाश्रीजी। पुष्पाश्रीजी महाराज की गुरूणी हीरश्रीजी महाराज की 17 शिष्याएँ थीं- प्रधानश्रीजी, दानश्रीजी, हरख श्रीजी, सुनंदाश्रीजी, रेवतीश्रीजी, हेमश्रीजी, शांतिश्रीजी, हेमन्तश्रीजी, वसंतश्रीजी, कुमुदश्रीजी, विनयश्रीजी, देवश्रीजी, पुष्पाश्रीजी, सुमित्राश्रीजी, कमलश्रीजी, मनोहरश्रीजी, जज्ञाश्रीजी, इनमें पुष्पाश्रीजी, व मनोहरश्रीजी, के अतिरिक्त अन्य साध्वियों के विषय में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं हुई।265 श्री पुष्पाश्रीजी के परिवार की तपोमूर्ति श्रमणियाँ इस प्रकार हैं-266 श्री हेमेन्द्र श्रीजी - 8, 16 उपवास, वर्षीतप, 500 आयम्बिल कीर्तिलताश्रीजी - 11, 15, 16, 17 उपवास, चार अठाई, चत्तारि अट्ठ दस दोय, वर्षीतप मोक्षानंदश्रीजी - सिद्धितप, श्रेणितप, वर्षीतप, चत्तारि, 8, 16, 30 उपवास 261-263.इनका विशेष परिचय अग्रिम पृष्ठों पर अंकित है। 264. श्रमणीरत्नो, पृ. 175-77 265. वही, पृ. 221-23, नोट - सुमलयाश्रीजी व हेमेन्द्रश्रीजी का विशेष परिचय अग्रिम पृष्ठों पर देखें 266. वही, पृ. 259, 260
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