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________________ दिगम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 4.9.61 आर्यिका विनयप्रभा माताजी (संवत् 2050) आप साबरकांठा (गुजरात) जिले के ईडर ग्राम निवासी श्री दिलीपकुमार जी दोशी (हुमड़ जाति, मंत्रेश्वर गोत्र) की कन्या हैं, माघ कृ. 6 संवत् 2030 के शुभ दिन आपका जन्म हुआ। हायर सैकेन्डरी के साथ दिगम्बर जैन पाठशाला ईडर से प्रथम से चतुर्थ भाग व छह ढाला की परीक्षाएं पास की। वैराग्योत्पत्ति होने पर शूद्रजल का त्याग एवं आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार कर लिया। पश्चात् द्वितीय प्रतिमा व सप्तम प्रतिमा व्रत क्रमशः ग्रहण कर माघ शुक्ला 3 संवत् 2050 को डुंगरपुर में गणिनी विजयमती माताजी से आर्यिका दीक्षा अंगीकार की। ध्यान, अध्ययन, चिंतन-मनन, मौन, लेखन तथा आगमोक्त प्रमाण एकत्रित करने में आप रूचि रखती हैं। आपने भक्तामर के 48 उपवास किये, वर्तमान में जिनगुणसंपत्ति तप कर रही हैं। 4.9.62 आर्यिका स्वस्तिभूषण माताजी (संवत् 2053 से वर्तमान) ___ आपका जन्म मध्यप्रदेश के छिन्दवाड़ा नगर में परवार दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के नीणाक श्री मोतीलाल जी जैन और श्रीमती पुष्पा जैन के यहां हुआ। संवत् 2053 को सिवनी में आचार्य सन्मतिभूषण जी से इटावा में आर्यिका दीक्षा अंगीकार की। आप अपने अध्ययन और साधना के माध्यम से वर्तमान में एक विचारक व लेखिका के रूप में प्रसिद्ध हैं। मृत्यु को जानो, आंखों के रूप, किससे क्या मिलता है, आदि उत्कृष्ट कोटि की काव्य-रचनाएं आपने की हैं। युवक-युवतियों में धर्म संस्कार जागृत करने के लिये आप शिविरों की समायोजना भी सफलता पूर्वक करती हैं। मुरादाबाद में आप की प्रेरणा से सृष्टि-स्वस्ति महिला मंडल, बालिका मंडल, युवा मंडल और नवयुवक मंडल का गठन हुआ।214 4.9.63 आर्यिका श्री प्रभावतीजी (संवत् 2054) आपने 'जटवाटा' औरंगाबाद जिले में आचार्य श्री देवनंदी जी महाराज से 90 वर्ष की वय में आर्यिका दीक्षा अंगीकार की, यह आपकी विशिष्ट ऐतिहासिक जीवन घटना है। आपने 2 अक्टूबर 1997 को दीक्षा ग्रहण की और मात्र 12 दिन संयम-पर्याय का अनुभव कर 14 अक्टूबर 1997 को स्वर्गवासिनी हुईं।15 4.9.64 क्षुल्लिका गुणमती माताजी आपका जन्म संवत् 1956 में लाला हुकमचंद जी के घर हुआ, विवाह के 36दिन के पश्चात् ही आपका सौभाग्य छिन गया, अत: आपका लक्ष्य व्रत, नियम, संयम का बन गया, जैनधर्म व्याकरण आदि में आप निष्णात बन गई, ज्ञानाराधना का स्वाद अन्य भी उठायें, इस शुभ भावना से गुहाना में श्री ज्ञानवती जैन वनिताश्रम' की स्थापना की। (आपका संसार में यही नाम था) नारी जाति के उद्धार के लिये इस संस्था ने कल्पवृक्ष का कार्य किया। आंतरिक संयम की प्रबल भावना के फलस्वरूप आचार्य शांतिसागर जी म. से क्षुल्लिका दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा के पश्चात् भी दरियागंज दिल्ली में कन्याओं में धार्मिक शिक्षा के लिये 'श्री ज्ञानवती कन्या पाठशाला' स्थापित करायी। आप स्त्री शिक्षा का प्रचार हो एवं चरित्र की वृद्धि हो इस हेतु अर्हनिश प्रयत्नशील रहीं।216 214. विनीत कुमार जैन (संयोजक), सृष्टि-स्वस्ति वाणी, चातुर्मास स्मारिका, नवंबर 2001, दिगम्बर जैन समाज, मुरादाबाद 215. समग्र जैन चातुर्मास सूची, विशेषांक सन् 1998 216. दि. जै. सा., पृ. 99 | 2491 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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