________________
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
इस चित्र के पाँच विभाग किये गये हैं। चतुर्थ भाग में भगवान ऋषभदेव का समवसरण दर्शाया है। ऊपर देव, देवी, मध्य में दो साधु एवं पीछे दो साध्वियाँ चित्रित है। नीचे श्रावक और श्राविका है। सभी दो-दो की संख्या में नमस्कार की मुद्रा में भगवान की वाणी को श्रवण करते हुए दिखाई दे रहे हैं। चित्र लगभग 100 वर्ष प्राचीन है। कलकत्ता जैन मंदिर की दीवार पर चित्रकार इन्द्र दूगड़ द्वारा ये चित्र चित्रित है।
श्री याकिनी महत्तरा की प्रतिमा (21वीं सदी)
चित्र 35 यह प्रतिमा विक्रम की 13वीं सदी के उदभट विद्वान आचार्य श्री हरिभद्रसूरि जी के समाधि मंदिर चित्तौड़(राजस्थान) किले की है। परिकर के ऊपर भाग में भाल पर साध्वी याकिनी की दर्शनीय मूर्ति प्रतिष्ठित है। साध्वी जी के दाहिने हाथ में माला है, दोनों ओर दो भक्त (एक श्रावक और श्राविका) हाथ जोड़कर विनय की मुद्रा में स्थित है। एक महान जैनाचार्य के मस्तक पर साध्वी की मूर्ति होना, यह इतिहास का एकमात्र उदाहरण है। याकिनी महत्तरा का विस्तृत परिचय अध्याय तीन में देखें।
88 For PrivateRPersonal use only
Jain Education International
www.jainelibrary.org