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________________ xxvi य 87 do उ वि भंगों के आगमिक रूप भंगों के सांकेतिक रूप ठोस उदाहरण १. स्यात् अस्ति अ- उवि है. २. स्यात् नास्ति ४. स्यात् अवक्तव्य युगपत् (एकसाथ) अनन्तत्व व्याघातक उद्देश्य विधेय ३. स्यात् अस्ति नास्ति च अ उ वि है. अउ वि नहीं है. ५. स्यात् अस्ति च अवक्तव्य च Jain Education International अअवि नहीं है. यदि पर्याय की अपेक्षा से विचार करते है तो आत्मा नित्य नहीं है। (अ' अ ) उ अवक्तव्य ह. अउ वि है. (अ' अरे )य उ अवक्तव्य है. अथवा अउ वि है. यदि द्रव्य की अपेक्षा से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य है। For Private & Personal Use Only यदि द्रव्य की अपेक्षा से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य है और यदि पर्याय की अपेक्षा से चार करते हैं तो आत्मा नित्य नहीं है। यदि द्रव्य और पर्याय दोनों ही अपेक्षा से एक साथ विचार करते हैं तो आत्मा अवक्तव्य है। (क्योंकि दो भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से दो अलग-अलग कथन हो सकते हैं किन्तु एक कथन नहीं हो सकता है | ) यदि द्रव्य की अपेक्षा से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य है किन्तु यदि आत्मा का द्रव्य, पर्याय दोनों या अनन्त अपेक्षाओं की दृष्टि www.jainelibrary.org
SR No.001691
Book TitleAnekantavada Syadvada aur Saptbhangi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Nyay, Epistemology, L000, & L005
File Size4 MB
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