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षोडश संस्कार
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आचार दिनकर
पूर्वपीठिका
लोक में आचार-मार्ग का प्रतिपादन करने वाले तत्त्ववेत्ता आद्ययोगी आदिनाथ को मैं वर्धमानसूरि प्रयोजनपूर्वक नमस्कार करता हूँ ।
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प्राणियों के प्रति करूणा करके आत्मकल्याण के उद्देश्य से जिन्होंने स्वयं धर्मचक्र रूप आचार-मार्ग का प्रतिपादन किया, उन आदि तीर्थंकर ऋषभदेव को मैं वंदन करता हूँ ।
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जिनकी कृपा से तत्त्वज्ञान के पथ पर चलना सुखद हो जाता है और जिन्होंने लोकाचार का प्रतिपादन किया है, उन सर्वात्मा, अर्थात् सर्वज्ञ देव को मैं नमस्कार करता हूँ ।
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स्वयं अपने पुरूषार्थ से मोक्ष को प्राप्त करने वाले, अनादि तत्त्व के ज्ञाता और जिन्होंने स्वयं आचार-मार्ग का आचरण किया है, उन स्वयंभू, अर्थात् स्वयं परमात्मा पद की प्राप्ति करने वाले को मैं नमस्कार करता
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जिसके वचन ही 'परावाणी' हैं, जिसकी पूजा (उपासना) परम श्रेय है और जिनके ध्यान से आलोकित परमतत्त्व (मोक्ष) की प्राप्ति होती है, ऐसी अर्हद् गिरा, अर्थात् जिनवाणी को मैं नमस्कार करता हूँ। 11511 जिनकी कृपा से लोग क्षण - मात्र में सम्यग्ज्ञान, सुकीर्ति एवं समस्त ऋद्धियाँ प्राप्त करते हैं, उन अम्बिका देवी को मैं नमस्कार करता हूँ। जिनकी कृपा से मुझ जैसे व्यक्ति भी विद्वानों की सभा में सिंह के समान गर्जना करते हैं, उन गुरू-चरणों में मैं प्रतिक्षण नमस्कार करता हूँ। करोड़ों उपाय करने पर भी जिस उत्तम तत्त्व की प्राप्ति नहीं होती, उसकी सुप्राप्ति जिनके प्रसाद से हो जाती है, उन गुरूदेव को मैं नमस्कार करता हूँ ।
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जो सत्यज्ञान, अर्थात् सम्यग्ज्ञान, मोक्ष मार्ग का प्रकाशक एवं कैवल्य का कारण है और जिसका आचरण करते हुए लोगों के ज्ञान चक्षु उन्मीलित होते हैं और जन्म से ही त्रिविध ज्ञान के धारक परम पुरुष ऋषभदेव ने जिस आचार मार्ग का अनुसरण किया है, वही प्रमाण है ।
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