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धार्मिक क्षेत्र में भी आपने अपना लोहा मनवाया। अनेकानेक धार्मिक कार्यक्रमों में आपकी उपस्थिति ही उस कार्यक्रम की सफलता की मोहर लगाती थी। आप कई संस्थाओं से जुड़े रहे, जिनमें ज्वेलर्स एसोसिएशन, कुशल संस्था, श्रीमाल सभा आदि प्रमुख हैं। यही नहीं आप धार्मिक कार्य में व्यस्त रहते और दूसरों को भी धार्मिक राह पर चलने के लिए प्रोत्साहित करते थे। मानव सेवा, जीव दया को आप प्राथमिकता देते थे। आप कभी किसी पर गुस्सा नहीं करते थे। बकौल शीतल जैन (झाड़चूर) नाराज नहीं होना यानी गुस्सा नहीं करना आपकी सबसे बड़ी खासियत थी । आपमें मिलनसारिता एवं स्पष्टवादिता के अलावा भी कई गुण थे। आपने अनेक धार्मिक यात्राएँ कीं ।
व्यवसायिक क्षेत्र में भी आपने अनेक कीर्तिमान स्थापित किए, जिनमें 31 / 33, खाराकुआँ, मुम्बई - 2 में सबसे पहले आपने अपना ऑफिस सन् 1947 में खोला एवं वहाँ पर आपने आढ़त का कार्य चालू किया । आज आपके सुपुत्रगण आपके व्यवसायिक साम्राज्य को आगे बढ़ाने में अग्रणी रहे हैं। अमेरिका, जापान, बैंकाक जैसे दूरस्थ स्थानों पर भी जवाहरात के कार्यालय खोले । जयपुर में विदेशी ग्राहकों को लाने का श्रेय भी आपको ही
है।
आप न केवल धार्मिक, सामाजिक बल्कि साहित्य के प्रति भी खासी रुचि रखते थे | आपने साहित्य के प्रति अपनी रुचि को निखारते हुए 'रत्नमाला' नामक पुस्तक का भी सम्पादन किया, जो कि पूर्व में दोहों के रूप में लिखित थी, लेकिन आपने उसका सुन्दर सरलीकरण एवं अनुवाद कर पुन: सम्पादित किया, जो जवाहरात के क्षेत्र में आने वाले नये लोगों को
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