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षोडश संस्कार
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आचार दिनकर क्षुधा शान्त करने के लिए तथा आहार बनाने में उपयोग किया हो, तो उस सुकृत की मैं अनुमोदना करता हूँ, बहुमान करता हूँ ।"
पुनः परमेष्ठीमंत्र बोलकर कहे "जो मैंने वायुकाय जीवों के वायु, प्रचण्ड वायु रूप शरीर को प्राणी - वध के स्थान पर, प्राणी संचलन के स्थान पर, प्राणी को पीड़ा हो, ऐसे स्थान पर एवं पापवर्धक तथा मिथ्यात्व का पोषण होता हो, ऐसे स्थानों में योजित किया हो, तो उसके लिए मैं निंदा करता हूँ, गर्हा करता हूँ, एवं उसके प्रति ममत्व का त्याग करता हूँ । जो मैंने वायुकाय के वायु, प्रचण्ड वायु रूप शरीर को प्राणी की रक्षा करने में, प्राणी को जिलाने में, साधुओं की वैयावृत्त में, धार्मिक कार्यों में उपयोग किया हो, तो उस सुकृत की मैं अनुमोदना करता हूँ, बहुमान करता हूँ ।"
पुनः परमेष्ठीमंत्र पढ़कर कहे जो मैंने वनस्पतिकाय के मूल, काष्ठ, छाल, पत्र, पुष्प, फल, बीज, रस एवं थड रूप शरीर को प्राणी - वध के स्थान पर, प्राणियों के संचलन के स्थान पर प्राणियों को पीड़ा हो, ऐसे स्थान पर, पापवर्धक एवं मिथ्यात्व का पोषण होता हो, ऐसे स्थानों में संलग्न किया हो, तो उसके लिए मैं निंदा करता हूँ, गर्हा करता हूँ एवं उसके प्रति ममत्व का त्याग करता हूँ। जो मैंने वनस्पतिकाय के मूल, काष्ठ, छाल, पत्र, पुष्प, फल, बीज, रस एवं थड रूप शरीर को क्षुधा शांत करने में, अरिहंत प्रतिमा की पूजा में धर्मस्थानों में, नैवेद्य करने में, जंतुओं की रक्षा करने में उपयोग किया हो, तो उस सुकृत की मैं अनुमोदना करता हूँ, बहुमान करता हूँ ।
पुनः परमेष्ठीमंत्र पढ़कर कहे जो मैंने सकाय जीवों के रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य, चर्म, रोम, नख, नाड़ी आदि से युक्त शरीर को प्राणियों के वध के स्थान पर, प्राणियों के संचलन के स्थान पर, प्राणियों को पीड़ा हो, ऐसे स्थान पर पाप वर्धक एवं मिथ्यात्व का पोषण हो, ऐसे स्थानों पर रखा हो, तो उसके लिए मैं निंदा करता हूँ, गर्हा करता हूँ एवं उस कर्म के प्रति ममत्ववृत्ति का त्याग करता हूँ। जो मैंने
सकाय जीवों के रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य, चर्म, रोम, नख आदि से युक्त मृत शरीर का अरिहंत चैत्यों में, अरिहंत बिम्बों में, धर्मस्थानों में, जंतुओं की रक्षा करने के स्थानों में, धर्म के उपकरणों में उपयोग किया हो, तो उस सुकृत की मैं अनुमोदना करता हूँ, बहुमान करता हूँ।
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